Sunday, April 12, 2020

सृष्टि का आधार तुम्हीं हो

नर की संगिनी आली हो

                                     

नारी नहीं, नई नवेली, रचना अजब निराली हो।
सृष्टि का आधार तुम्हीं हो, नर की संगिनी आली हो।।
मधुर आवाज में, नर विंध जाता।
मुस्कान पर, मर मिट जाता।
अधरों के रसपान को ये नर,
ब्रह्माण्ड में, सबसे भिड़ जाता।
नर का आकर्षण, पाकर के, तुम होती मतवाली हो।
सृष्टि का आधार तुम्हीं हो, नर की संगिनी आली हो।।
अंग-अंग सौन्दर्य समाया।
कातिल कैसा? हुस्न ये पाया।
छाती की, गोलाइयों ने ही,
नर को तेरा गुलाम बनाया।
कैसे प्रेमी बच पायेगा? मारक गालों की लाली हो।
सृष्टि का आधार तुम्हीं हो, नर की संगिनी आली हो।।
कमर कटीली, चाल मदमाती।
नर हो जाता, मदमस्त हाथी।
मर्यादा कोई, ठहर न पाये,
जब तुम, उसको पास बुलातीं।
जान हथेली पर रखकर के, करता वह  रखवाली हो।
सृष्टि का आधार तुम्हीं हो, नर की संगिनी आली हो।।

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