तू ही रस की खान है
प्रेममयी सौन्दर्यमयी तू, तू ही रस की खान है।
तू ही प्रेम की सीमा मेरी, मेरे उर की जान है।।
केशोें की ये, काली घटायें।
नयन कालिमा, कुटिल फिजायें।
कपोल लालिमा, सौन्दर्य बिखेरे,
उर पर ताले, मदमस्त कुचायें।
सरस रसीली, चितवन, चित को, चित्रित करती मान है।
प्रेममयी सौन्दर्यमयी तू, तू ही रस की खान है।।
नासिका मानो, शुक है विराजा।
अधरों की सुरखी, उसका खाजा।
चाल अदा, आमंत्रित करती,
इंतजार है, पिया आजा।
नयन नजर है, मिलन प्रतीक्षा, कपोल लालिमा आन है।
प्रेममयी सौन्दर्यमयी तू, तू ही रस की खान है।
बलखाती कटि, चलती है जब।
सभाल ले आंचल, कलि बिखरे कब?
चाहत चाहूँ, रहे चहकती,
तू ही प्यार है, तू ही है रब।
जीवन का आधार प्रेम है, मैं गाऊँ प्रेम के गान हैं।
प्रेममयी सौन्दर्यमयी तू, तू ही रस की खान है।
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