Thursday, April 9, 2020

रेगिस्तान में उड़ता रेत नर, नारी ज्यों फुलवारी है

नारी के बिन नर है अपूरण


                                       डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



नारी के बिन नर है अपूरण, पूरण करती नारी है।
उड़ता हुआ बीज ज्यौं है नर, पौषण देती क्यारी है।
सुंदर और सरस है रमणी।
गोरी हो या  काली चमड़ी।
कठिन समय की खातिर देखो,
संचित करती है वह दमड़ी।
कोमल है वह शक्ति पुंज है, विधि की रचना न्यारी है।
 नारी के बिन नर है अपूरण, पूरण करती नारी है।।
नारी बिन, नहीं है जीवन।
नर को देती नित संजीवन।
सरस स्पर्श और दिव्य दृष्टि से,
पोषण करती, देती जीवन।
माता, भगिनि, पत्नी प्रयसी, पुत्री भी जान से प्यारी है।
नारी के बिन नर है अपूरण, पूरण करती नारी है।।
नर नारी का विरोध नहीं है।
सरस प्रेम है, किरोध नहीं है।
तर्क-वितर्क और नोंकझोंक है,
आत्म मिलन में निरोध नहीं है।
रेगिस्तान में उड़ता रेत, नर, नारी ज्यों फुलवारी है।
नारी के बिन नर है अपूरण, पूरण करती नारी है।
राष्ट्रप्रेमी को प्रेम मिला है।
प्रणय काल में पुष्प खिला है।
झूठ कपट की मूरत बनकर,
नारी ने ही दिया सिला है।
विध्वंस में भी प्रेम का कलरव, सृष्टि की किलकारी है।
नारी के बिन नर है अपूरण, पूरण करती नारी है।।

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