Wednesday, April 29, 2020

धोखे की ठोकर, घायल आत्मा

नारी बिन नर!

                    डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



नींद ही जाकर, कहीं सो गई है।
चिंता, दुख से,  बड़ी हो गई है।
तूने,  जब से,  दिया है धोखा,
कोमलता भी, कड़ी,  हो गई है।

नारी बिन, नर! जी नहीं सकता।
स्वयं, जहर, कभी, पी नहीं सकता।
छल, छद्म, षड्यन्त्र, मुकदमें,
अवसाद अमर, कभी मर नहीं सकता।

प्रेम की मूरत, अब कहाँ खो गई है?
मातृत्व की गरिमा, कहाँ सो गई है?
प्रेम, समर्पण, और सृजन की देवी,
नारी! ठगिनी, कैसे  हो गई है?

ठोकर की, अब, चिंता न मुझको।
मैंने, सब कुछ, सौंपा था तुझको।
लोभ-लालच की करके सवारी,
कमाया है जो, देगी वो किसको?

अपने पर,  विश्वास,  बड़ा था।
नारी हित, हो कर्म, अड़ा  था।
धोखे की ठोकर, घायल आत्मा,
अडिग हूँ, पथ पर, जहाँ खड़ा था।

नारी! ठगिनी, कह नहीं, सकता।
ठगा गया हूँ, ठग  नहीं सकता।
सुता, बहिन, माता भी नारी,
नारी बिन, नर रह नहीं सकता।




No comments:

Post a Comment

आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.