Tuesday, April 14, 2020

प्रेम की देवी, ममता की मूरत, करुणा की तू खान है

प्रेम की देवी

                                    

प्रेम की देवी, ममता की मूरत, करूणा की तू खान है।
बेटी, बहिन, पत्नी, माता बन, जग का रखती ध्यान है।।
कार्य क्षेत्र की, नहीं कोई सीमा।
आश्वासन  ही, है  बस  बीमा।
अंदर बाहर, काम ये करतीं,
कल्पना, करीना या हो हसीना।
अदम्य जिजीविषा है अन्तर में, मानिनी मन की मान है।
प्रेम की देवी, ममता की मूरत, करुणा की तू खान है।।
बचपन  से है,  मुझे दुलारा।
गुस्से में भी,  दिया  सहारा।
दौड़ी-दौड़ी,  आई  माता,
पीड़ा में, जब भी मैंने पुकारा।
पति, पुत्र, पिता, भाई हित, खुद को करे कुर्बान है।
प्रेम की देवी, ममता की मूरत, करुणा की तू खान है।।
समान नहीं, तू अति विशिष्ट है।
सब कुछ तुझमें, अन्तर्विष्ट है।
सीमाएं जब, नर है लांघता,
काली बनकर, करे शिष्ट है।
तन-मन-धन सब करूँ समर्पित, करूँ समर्पित ज्ञान है।
प्रेम की देवी, ममता की मूरत, करुणा की तू खान है।।

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