Saturday, April 12, 2008

शिक्षक

शिक्षक
गुरू पद छोड़ा मास्टर बन गये, शिक्षा को कैसे पहचानें।
शिक्षक तो बन जाते हम सब, पर शिक्षा का मर्म न जानें।।
काम,क्रोध,पद,लिप्सा से घिर,अपने मन को कलुषित करते।
शिक्षा को व्यवसाय बनाकर,सरस्वती को नंगा करते।।
शिक्षा तो संस्कारित करती, संस्कारों को ये क्या जानें?
शिक्षक तो बन जाते हम सब, पर शिक्षा का मर्म न जानें।।
शिक्षक का पद पाकर के,वणिकों की बुद्धि अपनाते।
बच्चों के खाने को आता, कमीशन खाया,घर म¡गवाते।
असत्य भ्रष्टता स्वार्थों से घिर,व्यक्तित्व विकास,ये क्या जाने?
शिक्षक तो बन जाते हम सब, पर शिक्षा का मर्म न जानें।।
छात्रों को शिक्षा दे पाते,नव निर्माण कर वे दिखलाते।
त्याग बिना जो भोग करें नित,मानव वंश का दंश बढ़ाते।
पहले खुद को शिक्षित कर लें, शिक्षार्थी भी खुद को मानें।
शिक्षक तो बन जाते हम सब पर शिक्षा का मर्म न जानें।।

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