Tuesday, May 6, 2008

चरित्र का फण्डा-कैसा है ये झण्डा?

चरित्र का फण्डा-कैसा है ये झण्डा?
भारत देश महान है। सर्वगुणों की खान है। ये मेरा हिन्दुस्तान है। जो ये नारा लगाते हैं, वे तो कम से कम महान नहीं होते। नारे लगाने से कोई महान नहीं हो सकता। राम ने हमारे यहाँ जन्म लिया इस तथ्य से हम सभी राम तो नहीं हो जाते? जिस प्रकार रावण ने हमारे यहाँ जन्म लिया तो हम सभी रावण नहीं हो जाते? वस्तुत: भूतकाल में हम क्या थे? यह महत्वपूर्ण तो है, किन्तु यह हमारी महानता का परिचायक नहीं है। हमारी वर्तमान स्थिति का आकलन वर्तमान जीवन पद्धति व आचरण से ही होगा। उस समय की सामाजिक व्यवस्था भिन्न थी। आज की भिन्न है। यदि हम उस समय की सामाजिक व्यवस्था की कल्पना करें तो कुछ भी हाथ नहीं लगने वाला है, क्योंकि राम की तरह आज कोई भी गद्दी को त्यागने को तैयार नहीं है। सोनिया जी प्रधानमंत्री पद को भले ही लेने से मना कर दें किन्तु वनवास पर जाने के लिए तो कोई भी तैयार नहीं है। क्या हुआ हम कुर्सी पर नहीं बैठे, हम कुर्सी के नियामक बनकर उसको संचालित तो करते ही हैं। हो सकता है कि हम स्वयं भ्रष्टाचार न करते हों किन्तु हम भ्रष्टाचारियों का बचाव तो करते ही हैं। क्या हुआ? हम उच्च मूल्यों की बात करते हैं। हम उन मूल्यों की स्थापना के लिए कुछ भी त्यागने या भोगने को तैयार नहीं हैं। हम सत्य की बात तो करते हैं किन्तु सिर्फ चन्द रुपयों या स्वार्थ के कारण सत्य को सरे राह नीलाम करने को तैयार बैठे हैं। हम दूसरों को चरित्रहीन, भ्रष्टाचारी, कुमार्गी व पापी कहते हैं किन्तु हम स्वयं यह भी विचार नहीं करते कि इन शब्दों की परिभाषा क्या है? कहीं हम भी इनकी हद में नहीं आ रहे?
एक शब्द को ही लेते हैं- चरित्र। यह सर्वाधिक प्रचलित शब्द है। देश के कौने-कौने में इसका प्रचलन देखने को मिलेगा। बड़ा व्यापक है- चरित्र का फण्डा, यह बन जाता है लोगों के लिए धंधा और चरित्रहीन ही उठाते हैं, इसका झण्डा। चरित्र की बात करते हैं सभी, सभी चरित्र के नाम पर करते हैं दिल्लगी। चरित्रवान का प्रमाण-पत्र सभी पा जाते हैं और चरित्रहीन होकर चरित्र के गीत गाते हैं। चरित्र की बात सभी करते हैं, किन्तु क्या कभी हम इसकी अवधारणा पर विचार करते हैं? विचार करने की बात है- क्या बिना टिकिट यात्रा करने वाला, क्या पंक्ति तोड़कर आगे जाने वाला, क्या धनराशी लेकर भी यात्री को टिकिट न देने वाला, क्या परीक्षाओं में नकल करने वाला, क्या परीक्षाओं में नकल कराने वाला, क्या रिश्वत लेने वाला, क्या रिश्वत देकर सार्वजनिक सेवा में स्थान पाने वाला, क्या मिलावट करने वाला, क्या पड़ोसी को धोखा देने वाला, क्या जाति के आधार पर वोट देने वाला, क्या भाषा के नाम पर दंगे भड़काने वाला, क्या धर्म या जाति के नाम पर राजनीति करने वाला, क्या सार्वजनिक सम्पत्ति को नियमों का दुरुपयोग करके स्वयं हथियाने वाला, क्या अपने कर्तव्य में कोताही बरत कर राष्ट्र व समाज को नुकसान पहु¡चाने वाला, क्या प्रदूषण फैलाकर धरती व आसमान को ही संकट में डालने वाला आदि चरित्रवान, पुण्यवान व सदाचारी है? यदि ऐसे लोग चरित्रवान हैं तो कम से कम मेरे विचार में ऐसे चरित्रवानों से भगवान बचाये। ऐसे लोग किसी भी राष्ट्र या समाज के लिए धीमा जहर हैं जो उसे धीरे-धीरे खोखला कर रहे हैं।
दूसरी ओर यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य को निश्चित समय पर गंभीरता के साथ पूरा करता है, रिश्वत नहीं लेता है, रिश्वत नहीं देता है, किसी को धोखा नहीं देता है, समाज को हानि पहु¡चाने वाले किसी भी कृत्य में सिम्मलित नहीं होता है। जिसका जीवन सार्थक व पारदर्शी है। जो न केवल स्वप्नदर्शी है, वरन् व्यावहारिक भी है( जो व्यावहारिकता के नाम पर झू¡ठ नहीं बोलता) जो कहता है, वही करता है और जो करता है वही कहता है, जो अपने कुकर्मो को छिपाकर अपना चरित्र नहीं गढ़ता है। उसके वैयक्तिक जीवन को लेकर, वे लोग जो अपने आप को उससे हीन समझते हैं, अपनी हीनता के भाव के वशीभूत उसे दुनिया¡ की नजर में से गिराने के लिए या अपने आपको श्रेष्ठ मानकर अह्म पालने के लिए उसके चरित्र को लांक्षित करते हैं। चरित्र का आशय केवल स्त्री-पुरुष सम्बन्धों से ही क्यों लिया जाता है? प्रसिद्ध व्यंगकार श्री हरिशंकर परसाई के अनुसार, `चरित्र केवल दोनों टा¡गों के बीच की ही विषय-वस्तु क्यों है?´ व्यक्ति का जो व्यवहार उसके और उसके साथी के बीच ही सीमित है, जिससे वह या उसका साथी कोई भी असंतुष्ठ नहीं है, जिससे किसी को भी कोई कष्ट नहीं है केवल ऐसे व्यवहार से तो व्यक्ति को चरित्रहीन घोषित कर दिया जाता है किन्तु जो लोग अपने कृत्यों से सार्वजनिक जीवन को ही कष्टप्रद बना रहे हैं, जो लोगों के प्राणों को ही संकट में डाल रहे हैं। जो वैयक्तिक स्वार्थों की पूर्ति की खातिर रिश्वत लेकर या देकर सार्वजनिक सेवाओं को ही कमजोर कर रहे हैं, जिनके कृत्यों से समुदाय का अस्तित्व ही संकट में पड़ रहा है, जो सत्ता के लिए झू¡ठ पर झू¡ठ बोले जा रहे हैं, जो दुश्मन को भी गले का हार बता रहे हैं और अपने भाई का ही गला काट रहे हैं। इस प्रकार के लोग कैसे चरित्रवान हैं? विचार करने की बात है।
सार्वजनिक जीवन की अपेक्षा वैयक्तिक जीवन की शुचिता या योन व्यवहार को ही व्यक्ति के मूल्यांकन का मापदण्ड क्यों माना जाता है। यह मापदण्ड व्यक्ति को सबल बनाता है या नहीं संदिग्ध है किन्तु समुदाय को कमजोर अवश्य करता है। चरित्र को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है। भ्रष्टाचारियों , मिलावटखोरों, झू¡ठ में पारंगत हस्तियों, धर्म के ठेकेदारों, आडम्बरी साधुओं, कर्तव्य विमुख नेताओं व अधिकारियों को चरित्रहीनों के खिताब से नवाज कर उनका सार्वजनिक बहिष्कार क्यों नहीं किया जाता? अपनी आर्थिक मजबूरियों व सामाजिक अत्याचारों के फलस्वरुप अपनी देह को बेचकर अपनी आजीविका कमाने वाले महिला/पुरुष लोगों के अंगों को बेचकर मालामाल होने वाले सफेदपोश डाक्टरों, अधिकारियों या नेताओं की तुलना में कहीं अधिक श्रेष्ट क्यों नहीं हैं? अपने पर्दे के पीछे कुकृत्यों को छिपाने वाले महिला/पुरुषों से अपनी मजबूरियों या सामाजिक अन्याय के चलते कोठों पर कार्य करने वाले, वैश्या-वृत्ति को ही ईमानदारी से अपनी आजीविका मानने वाले व्यक्ति श्रेष्ट क्यों नहीं हैं? वास्तविकता यह है कि चरित्र के बारे में हमारी अवधारणाए¡ एकांगी है, जिन्हें व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की आवश्यकता है। जिस प्रकार श्लीलता और अश्लीलता की अवधारणाए¡ समय सापेक्ष हैं, उसी प्रकार चरित्र की अवधारणा भी एकांगी नहीं समाज सापेक्ष है या होनी चाहिए। जो व्यक्ति समाज के लिए उपयोगी व समर्पित है और जो किसी के साथ भी किसी प्रकार का अत्याचार, अन्याय व जबरदस्ती करने का विचार भी मन में नहीं लाते, ऐसे व्यक्तियों को किसी से भी चरित्र-प्रमाण पत्र हासिल करने की आवष्यकता नहीं है, खासकर ऐसे लोगों से जो स्वयं ही भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे होने के कारण चरित्रहीन है, जो वैयक्तिक स्वार्थों को सर्वोच्चता देने के कारण स्वयं ही समुदाय को हानि पहु¡चा रहे हैं, जो लोकसेवक होते हुए भी लोक का अहित करने के कारण समाज विरोधी हैं जो लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को हानि पहु¡चाकर देष को कमजोर कर रहे हैं, जो अपनी कमजोरियों के चलते समाज के उन्नयन में बाधक हैं, ऐसे लोगों के पीछे चलने की अपेक्षा, हमें ऐसे लोगों के पीछे नही, साथ चलना चाहिए जिनका सामाजिक जीवन सुचिता व पवित्रता लिए हुए है। वास्तव में चरित्र की अवधारणा ऐसे व्यक्तियों के कृत्य ही निर्मित करेंगे।

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