आतंक का मौसम
आतंक का मौसम आया रे! आतंक का मौसम, भारत में बहार है। सभी को वोटों की दरकार है। भारत हो या पाक दोनों और खींचातान है। आतंकवादियों पर किसी की नहीं लगाम है। सभी आतंक को करते सलाम है। परवेज मुशरफजी के हाथ से निकल चुकी कमान है। मजबूरी में ही सही, अमेरिकी दबाब में आतंकवादियों के विरुद्ध मुशरफजी ने कुछ उठाये थे कदम। आज मुशरफजी खुद ही हो चुके हैं बेदम। गिलानी हो या जरदारी, नवाज शरीफ से हार न मानी। जज करने में बहाल, सभी को आ गयी नानी याद। आतंकवादियों से किया समझौता। स्वात घाटी का कर दिया सौदा। सरकार ने दी गांरटी नहीं करेगी, उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही, उनको भी वायदे की याद दिलाई। पाक में आतंक नही मचायेंगे। सारे भारत में खेल रचायेगें। वही उनकी कर्मभूमि है। पाक में तो खानी बस पूरी हैं। भारतीय भी धर्मभीरू हैं। अतिथियों को देवता मानते हैं। वे आतंकवादियों को भी गले से लगायेंगे। भले ही संसद में सांसद मारे जायेंगे। उनके खिलाफ कोई कानून नहीं बनायेंगे। वे अहिंसक हैं, न्यायालय से फांसी बुल जाने पर भी फांसी नहीं लगायेंगे। जरूरत पड़ी तो हवाई जहाज में बिठाकर पाक में पहुचायेंगे। जहाँ से वे पुन: अपना खेल दिखाएँगे । पाक में भी अब नहीं है इनके लिए काम, भारत में भी चुनावी मौसम में इनके खिलाफ नहीं हो सकता कोई भी कठिन प्लान। बर्फ भी पिघल रही है। डगर आसन बन रही है। अत: अगले वर्षों में ये भारत में ही खून बहायेंगे। सारे भारत पर अपने आतंक का शासन फैलायेंगे।
 
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