Wednesday, April 29, 2015

अकड़ तो मुर्दे में भी होती है

                                            रोशनी विश्वकर्मा


हे मानव मन .

ना इतरा इतना की,

जिंदगी बहुत छोटी है .

पर अभी चलना भी  तो  है ,

बहुत दूर हमें चले जाना है ,

इसलिए जिंदगी से ना तो गिला है 

ना है कोई शिकवा .

पर थोड़ी सी ,

हैरान परेशान हूँ कुछ  इस तरह 

भूल जातें है लोग कोई ,

जिस दर्द से वो गुजर आतें है.

जाने क्यों ?

वही दर्द दूसरों को दे जातें है .

किसी की तमन्नाओं  की लाश पर , 

अपनी खुशियों की सेज़ बिछाते  है .

जाने क्यों अकड़ते है इतनी ,

की भूल ही जातें है ,

अकड़ तो मुर्दे में भी होती है,

मगर वो बेजान होते है 

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