रोशनी विश्वकर्मा
हे मानव मन .
ना इतरा इतना की,
जिंदगी बहुत छोटी है .
पर अभी चलना भी तो है ,
बहुत दूर हमें चले जाना है ,
इसलिए जिंदगी से ना तो गिला है
ना है कोई शिकवा .
पर थोड़ी सी ,
हैरान परेशान हूँ कुछ इस तरह
भूल जातें है लोग कोई ,
जिस दर्द से वो गुजर आतें है.
जाने क्यों ?
वही दर्द दूसरों को दे जातें है .
किसी की तमन्नाओं की लाश पर ,
अपनी खुशियों की सेज़ बिछाते है .
जाने क्यों अकड़ते है इतनी ,
की भूल ही जातें है ,
अकड़ तो मुर्दे में भी होती है,
मगर वो बेजान होते है
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