Thursday, April 2, 2015

ये कैसी रीति चलाये बैठे हो

आप ही दूर हुये बैठे हैं 

                                                 

              रोशनी विश्वकर्मा, जमशेदपुर, झारखण्ड


हम तुमसे नही ऐंठें है 

आप ही दूर हुये बैठे हैं 


ये कैसी रीति बनाये हो 


मुझे मनाते मानते 


खुद ही रूठे बैठे हो 


खींच ले गये मुझे अपने 


गलियारे तक 


पर बन्द रखा दरवाजा 


बिना मुझे देखे 


बिना मुझसे मिले 


छोड बैठे गली के कोने में 

कम से कम इतना तो करते 


झरोखा ही खुला छोड़ देते 


झाँक लेती मैं भी अंदर


दे पाती आवाज़ , पर 


भला बताओ तो 


चीत भी आप पट भी आप 


ये कैसी रीति चलाये बैठे हो.

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