रंगीनी नहीं जिन्दगी में दिखता नहीं सपना है।
संगिनी ने साथ छोड़ा, कोई दिखता नहीं अपना है।
जिन्दगी धूप मरुस्थल की, स्नेह नीर नहीं आसपास।
इस तपते पथ में पथिक तुझे, अब अकेले ही तपना है।
पल में भूल जायें आप हमें, होगा सरल आपके लिए।
हमें तो पल-क्षण-निमिश क्या? युगों आपका नाम जपना है।
हमारी सांसों से भी आपकी यदि, खुशियाँ कम होती हों।
सौंपतें हैं ये थाती आपकी, हमारे गमों का नहीं नपना है।
जब भी आवाज दोगी हमें, हम खड़ें मिलेंगे आपके दर पर।
गलती नहीं थी, न है, आपकी, ये तो हमारा ही बचपना है।
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