Sunday, April 5, 2015

हाल तुम्हारा पाऊँ किस ठोर

सपने में भी नहीं दिखती आप


सपने में भी नहीं दिखती आप

मुरझाया वो चाँद दिखा दो,

बादलों में छिप जाना आप।


टूटी नहीं हमारी आस

घोड़ी नहीं हमारे पास

फिर भी खोद रहे हम घास।


मरूस्थल में भी दादुर मोर

नीर नहीं हैं मचाये शोर

 हाल तुम्हारा पाऊँ किस ठोर।

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