टूटे दिल से निकले कविता
टूटे दिल से निकले कविता, दिल की कसक कोमल होती है।
संयोग काल में समय न मिलता, प्रेमी संग कविता सोती है।
विश्वास खून जब यहाँ हुआ था,
महसूसा किया जब फटा हिया था
फोटो सेशन वहाँ था होता,
विश्वास कैसे? तब यहाँ जिया था।
हँसते होंगे आप तो तब भी, आत्मा हमारी आज भी रोती है।
टूटे दिल से निकले कविता, दिल की कसक कोमल होती है।।
आत्मा के जब फटे आवरण,
मुक्ति की चाहत जबती है।
आवरण रहित आत्मा ही तो,
सीप है, जो मोती सेती है।
इच्छाओं के आँगन में तो काँटों की महफिल सजती है।
टूटे दिल से निकले कविता, दिल की कसक कोमल होती है।
हमने सजायी प्यार की महफिल,
इच्छाओं के हाथी ने रौदा,
हमने प्यारा मित्र था खोजा,
उधर से बस हो रहा था सोदा।
कैसे सजाऊँँ? फिर से महफिल! जगते हम दुनिया सोती है।
टूटे दिल से निकले कविता, दिल की कसक कोमल होती है।
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