सरकारी सज्जनता?
उसने अपने मित्र को अपने एक अधिकारी की सज्जनता का बखान करते हुए कहा, "बड़े ही सज्जन पुरुष हैं." मैंने अपने जीवनमें इतने सज्जन अधिकारी दूसरे नहीं देखे.
मित्र ने उत्सुकता से उनकी ओर देखा तो उन्होंने बात आगे बढ़ाई. उनके समय में हम अपनी इच्छानुसार काम करते थे. जब काम में मन न लगता बाहर निकल जाते. याद नहीं आता कभी सुबह कार्यालय के लिए देर से आने पर भी उन्होंने कभी डांट लगाई हो.
एक बार मोहन के पिताजी बीमार पढ़ गए और मोहन १८ दिन घर रहा, वापस आने पर उससे हस्ताक्षर करवा लिए, बेचारे की १८ दिन की छुट्टी बच गईं.
एक बार सद्यः ब्याहता महिला कर्मचारी के पति पहली बार उससे मिलने आये तो न केवल उस महिला को अपने पति के साथ दो दिन घूमने के लिए भेज दिया, वरन सरकारी गाड़ी भी उनके साथ भेज दी ताकि वे एन्जॉय कर सकें.
उनका मित्र सरकारी सज्जन की सरकारी सज्जनता की कहानी सुनकर गदगद हो गया और उसके मुह से निकला काश! ऐसे सज्जन अधिकारी के अधीन कार्य करने का मौक़ा मिलता.
“दिल की टेढ़ी-मेढ़ी राहें”
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रोहन एक सफल व्यवसायी था, जो अपने काम में इतना व्यस्त था कि उसे अपने जीवन
में प्रेम की कमी महसूस नहीं होती थी। प्रेम तो क्या रोहन के पास सुख-दुख की
अनुभूति ...
2 weeks ago

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