Tuesday, April 27, 2010

चोर-चोर मौसेरे भाई

चोर-चोर मौसेरे भाई,

मिलकर सारे करें कमाई.

ईमानदार की करें कुटाई,

हम भी इनमें फंस गए भाई. 
हसंते सारे   लोग-लुगाई.
चोर-चोर   मौसेरे भाई.

भ्रष्टाचार की कैसी लीला?
लेने को सबका कुरता ढीला.
रिश्वत की महिमा तो देखो,
खाई को दिखला दे टीला.
ईमान की देखो यहाँ हंसाई.
चोर-चोर मौसेरे भाई.

बेईमान की सुविधा के हित,
ईमानदार भी हो जाए चित.
सुविधा-शुल्क की महिमा न्यारी,
देते हैं जो, पाते वो नित.
बेईमानी सबको है भाई.
चोर-चोर मौसेरे भाई

लेने को ललचाते हैं सब,
देने में ही याद आये रब.
लेन-देन जब दोनों भायें,
समृद्धि पाता नर-पशु तब.
विरुदावली सबने हैं गाईं.
चोर-चोर मौसेरे भाई.

ईमानदार की सनद मिली है,
रिश्वत भाई देनी पड़ी है.
बेईमानी ही हुई भलाई.
चोर-चोर मौसेरे भाई

एक दिन हमने चोर को पकड़ा,
हम थे छोटे, चोर था तगड़ा.
उसने हम पर दावा ठोका,
हमने उससे किया क्यों झगड़ा?
अफसर  ने हमारी करी कुटाई,
चोर-चोर मौसेरे भाई.

सच का आज दुश्मन है ज़माना,
झूंठ से मिलता उसे खजाना.
बाजार में गवाह हैं बिकते,
ईमानदार को पड़े लजाना.
सच अस्तित्व की लड़े लड़ाई.
चोर-चोर मौसेरे भाई.

1 comment:

  1. A good poem !!

    Arvind K.Pandey

    http://indowaves.instablogs.com/

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