मेरे साथ हैं, मेरी मां सा
अज्ञान के क्षण
असहायता के पल
अज्ञात पथ
लड़खड़ाते पद
लांघी फिर भी हद
बढ़ता रहा कद
चूमा था माथ
मां थी मेरे साथ।
अंजाना शहर
तपती दोपहर
तन्हाई का कहर
बीते वो पहर
मां की थी महर।
पल-पल शिक्षा
कदम-कदम परीक्षा
उड़ने की इच्छा
लेनी नहीं भिक्षा
मां ने दी दीक्षा।
मर गईं सारी इच्छा
देनी नहीं परीक्षा
नहीं रही चाह
निकलती न आह
नहीं किसी की परवाह
नहीं किसी से आशा
कहां मिलेगी निराशा
आयेगी नहीं हताशा
मेरे साथ हैं, मेरी मां सा।
मौत से भी टकराऊं
कर्तव्य पथ पर मारा जाऊं
अपनी मेहनत का ही खाऊं
सच के गीत गाऊं
नहीं कभी ललचाऊं
न मोह में बांधा जाऊं
दु:ख में भी हरषाऊं
मां का आशीष पाऊं।
अपने लिए जिएं-१
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* समाज सेवा और परोपकार के नाम पर घपलों की भरमार करने वाले महापुरूष परोपकारी
होने और दूसरों के लिए जीने का दंभ भरते हैं। अपनी आत्मा की मोक्ष के लिए पूरी
द...
1 year ago
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