Sunday, March 15, 2020

प्रेम लुटाने की फितरत है, लेने का कोई ख्वाब नहीं है

प्रेम कोई व्यापार नहीं है


प्रेम पुजारी हूँ, मैं केवल, और कोई भी भाव नहीं है।
प्रेम के बदले, प्रेम मैं माँगू, प्रेम कोई व्यापार नहीं है।।
प्रेम नहीं है गुलाम किसी का।
समर्पण करे, है प्रेम उसी का।
प्रेम नाम षड्यंत्र ये कैसे?
प्रेम पवित्र है, भाव सभी का।
प्रेम लुटाने की फितरत है, लेने का कोई ख्वाब नहीं है।
प्रेम के बदले, प्रेम मैं माँगू, प्रेम कोई व्यापार नहीं है।।
प्रेम मधुरता समस्त सृष्टि  की।
प्रेम अश्रु है, प्रयल वृष्टि की।
जड़-चेतन सब, प्रेम तत्व हैं,
प्रेम तरणि हैं, भाव समष्टि की।
प्रेम में नहीं आकलन होता, गणित का कोई हिसाब नहीं है।
प्रेम के बदले, प्रेम मैं माँगू, प्रेम कोई व्यापार नहीं है।।
प्रेम में तुम खुबसूरत  होतीं।
तुमसे ही है, प्रेम की ज्योति।
झूठ प्रेम की कैंची जब में,
प्रेम बिना सब कुछ हो खोती।
प्रेम बिना, इस जग में मुझको, जीने का कोई चाब नहीं है।
प्रेम के बदले, प्रेम मैं माँगू, प्रेम कोई व्यापार नहीं है।।

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