सभी मित्रों को परिवार व समाज सहित दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं
अपक्षा है, हम लोग दीपावली को सादगीपूर्वक मनायें तथा अपने आप को समाज के प्रति समर्पित करने के लिये तैयार करें, अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर अधिक ध्यान दें और सभी के दिलों में प्रेम का एक दीपक जलाने में सफ़ल हों
छोटा सा एक, दीप जलायें।
छोटा सा एक, दीप जलायें।
मानव-मन को पुन: मिलायें।।
अंधकार से ढका विश्व है,
दीप से दीप जलाते जायें।
चौराहे पर रक्त बह रहा,
नारी नर को कोस रही है,
नर नारी का खून पी रहा,
लक्ष्मीजी चीत्कार रही हैं।
राम का हम हैं, स्वागत करते
रावण मन के अन्दर बस रहा।
लक्ष्मी को है मारा कोख में
अन्दर लक्ष्मी पूजन हो रहा।
आओ शान्ति सन्देश जगायें
हर दिल प्रेम का दीप जलायें।
बाहर दीप जले न जले,
सबके अन्दर दीप जलायें।
विद्वता बहुत हाकी है अब तक,
पौथी बहुत बांची हैं अब तक,
हर दिल से आतंक मिटायें,
छोटा सा एक, दीप जलायें।
अपक्षा है, हम लोग दीपावली को सादगीपूर्वक मनायें तथा अपने आप को समाज के प्रति समर्पित करने के लिये तैयार करें, अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर अधिक ध्यान दें और सभी के दिलों में प्रेम का एक दीपक जलाने में सफ़ल हों
छोटा सा एक, दीप जलायें।
छोटा सा एक, दीप जलायें।
मानव-मन को पुन: मिलायें।।
अंधकार से ढका विश्व है,
दीप से दीप जलाते जायें।
चौराहे पर रक्त बह रहा,
नारी नर को कोस रही है,
नर नारी का खून पी रहा,
लक्ष्मीजी चीत्कार रही हैं।
राम का हम हैं, स्वागत करते
रावण मन के अन्दर बस रहा।
लक्ष्मी को है मारा कोख में
अन्दर लक्ष्मी पूजन हो रहा।
आओ शान्ति सन्देश जगायें
हर दिल प्रेम का दीप जलायें।
बाहर दीप जले न जले,
सबके अन्दर दीप जलायें।
विद्वता बहुत हाकी है अब तक,
पौथी बहुत बांची हैं अब तक,
हर दिल से आतंक मिटायें,
छोटा सा एक, दीप जलायें।
शुभकामनायें !
ReplyDeleteआपके विचार मननीय हैं।
ReplyDeleteमधुरता कपटी होने का प्रथम प्रमाण हैं.
ReplyDeleteराष्ट्रप्रेमीजी इस वाक्य को पढ़कर आनंद आगया.
आप धूर्तों की लीला से विदित है.कमबख्त गोद मे बैठाकर ज़हर पिलाते हैं.अपने बारे में क्या कहे ब्लॉग पर बिखरा पड़ा हूँ.
कविता में कथ्य के साथ शिल्प का आग्रही हूँ. सत्य किसी भी रूप में आनंद ही देता है.ढोंगियों से बेहग चिड़ छूटती है आपकी तबियत भी वैसी ही कुछ है.स्नेह बनायें रक्खे.