Sunday, October 5, 2008

रत्नो को पहचान न पाते, मेरे जैसे अन्धे होते

रचना

हमें रोशनी दे पायें जो, ऐसे कुछ ही चन्दे होते।
पथिकों पर विश्वास करें जो, ऐसे कुछ ही बन्दे होते।।
यात्रा से हम थके हुए थे,
निराशाओं से घिरे हुए थे।
तुमने है विश्वास दिलाया,
सच है ये पथ, चुने हुए थे।
हमें सहारा दे पायें जो, ऐसे कुछ ही कन्धे होते।
पथिकों पर विश्वास करें जो, ऐसे कुछ ही बन्दे होते।।
रचना ही सृष्टि करती है,
विध्वंशो को गले लगाती।
स्नेह-नीर से सींच-सींच कर,
गंगा आगे बढ़ती जाती।
शान्ति और सुख देने वाले, जग में कुछ ही धन्धे होते।
पथिकों पर विश्वास करें जो, ऐसे कुछ ही बन्दे होते।।
स्नेह और विश्वास मिले बस,
और न कोई करूं कामना।
तुमरे जैसे छात्र मिलें तो,
और किसी की मुझे चाह ना।
रत्नो को पहचान न पाते, मेरे जैसे अन्धे होते।
पथिकों पर विश्वास करें जो, ऐसे कुछ ही बन्दे होते।।

2 comments:

  1. "हमें सहारा दे पायें जो, ऐसे कुछ ही कन्धे होते।
    पथिकों पर विश्वास करें जो, ऐसे कुछ ही बन्दे होते।।"

    एक उच्च कोटि की रचना देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! राष्ट्रप्रेमी जी ! और आप जैसे अच्छे ह्रदय का साथ देने हमारे जैसे बहुत लोग खड़े मिलेंगे ! बहुत अच्छी तरह से कवि वेदना की अभिव्यक्ति है इस गीत में ! आगे भी मुझे ऐसी रचनाओं का इंतज़ार रहेगा !

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  2. हमेशा की तरह आपकी सुंदर रचना पढी धन्यबाद मेरे ब्लॉग पर पधार कर उत्साह वर्धन के लिए धन्यबाद. गुणी जन का आशीर्वाद मेरा सौभाग्य है पुन: नई रचना ब्लॉग पर हाज़िर आपके मार्ग दर्शन के लिए कृपया पधारे और मार्गदर्शन दें

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