Sunday, October 5, 2008

महिलायें अपनी योग्यताओं का इस्तेमाल अपने पतियों के करियर के उन्नयन में करें - मेगन बाशम

राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट दिनांक ५अक्टूबर २००८ के पृष्ठ २ से साभार

किताबों की दुनिया कॉलम के अन्तर्गत डॉ.दुर्गाप्रसाद अग्रवाल द्वारा मेगन बाशम की हाल ही में प्रकाशित किताब `बिसाइड एवरी सक्सेसफुल मैन´ की समीक्षा की गई है जिसे मैं साभार हूबहू यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । निश्चित रूप से यह किताब हमारे यहाँ के महिला और पुरूषों के लिए मार्गदर्शक हो सकती है जो समानता के नशे में परिवार व समाज को ही नजरअन्दाज करते हैं, जो भारतीय संस्कृति व परंपराओं पर ही कुठाराघात करते हैं। आधुनिकता और समानता तथा वैयक्तिक स्वतंत्रता की मांग व संघर्ष के कारण परिवार जैसी महत्वपूर्ण संस्था कमजोर होती जा रही है और परिवार के बिना न नर सुखी रह सकता है और न नारी। ऐसे नर-नारी जो अपनी भ्रमित अवधारणाओं के कारण परिवार को ही नजरअन्दाज करने पर उतारू हैं, अपनी धारणाओं पर पुनर्विचार करें तो शायद नर, नारी, परिवार व समाज के लिए वे अधिक उपयोगी बन सकेंगे।

पत्रकार और प्रसारण माध्यमों की जानी-मानी टिप्पणीकार मेगन बाशम की हाल ही में प्रकाशित किताब `बिसाइड एवरी सक्सेसफुल मैन´ एक चौंकाने वाली स्थापना करती है और वह कि आज की औरत कामकाजी दुनिया से बाहर निकलने के लिये व्याकुल है, लेकिन दौहरी कमाई से घर चला पाने की विवशता के कारण काम करते रहने को मजबूर है। कहना अनावश्यक है, यह स्थापन प्रचलित नारीवादी सोच से हटकर है।
मेगन पश्चिम के एक लोकप्रिय मनोरंजन चैनल ई! से एक मार्मिक प्रसंग उठाती हैं। एक आकर्षक युवा शल्य चिकित्सक ने उतनी ही आकर्षक एक डॉक्टर से शादी की। कुछ समय बाद वे एक घर खरीदने की योजना बनाते हैं। एक एस्टेट एजेंट उन्हें एक बहुत उम्दा घर बताता है। घर दोनों को बहुत पसन्द आता है। पति पत्नी से कहता है, `यह घर हमारे लिये एकदम उपयुक्त है। लेकिन हम यदि इसे खरीदना चाहें तो तुम्हें अपनी नौकरी जारी रखनी पड़ेगी।´ पत्नी पूछती है, `कब तक?´ `यह तो मैं नहीं जानता। शायद काफी दिनों तक।´ पति का जबाब है। हताश-उदास पत्नी कहती है, `मगर हमने तो बच्चों के बारे में बात की थी, तुम भी तो तैयार थे।´
`अभी उसके लिए बहुत वक्त है।´ पति का यह भावहीन उत्तर सुनकर पत्नी अपनी कड़ुवाहट रोक नहीं पाती है, हाँ , काफी वक्त है, अगर तुम किसी और औरत के साथ बच्चे चाहो तो। वैसे भी मैं पैंतीस की तो हो चुकी हू¡।´
अब जरा इस यथार्थ की तुलना कुछ वर्ष पहले के उस यथार्थ से कीजिए जहाँ पति चाहता था कि पत्नी घर में ही रहे, बच्चे पैदा करे और पाले। मेगन बताती हैं कि जब भी वे और उनकी सहेलियां मिलती हैं (सभी 25 से 35 के बीच की उम्र की हैं) तो उनकी बातचीत इस मुद्दे पर सिमट आती है कि आखिर कब उनके पति उन्हें नौकरी से मुक्ति दिलायेंगे?
मेगन न्यूजर्सी की एक महिला वकील को यह कहते हुए उद्धृत करती हैं कि उनका सपना है कि वे अपने काम से मुक्त हो जायं और सप्ताह के किसी दिन दोपहर में ग्रॉसरी शापिंग करें। इसी तरह एक 29 वर्षीया डॉक्टर कहती हैं कि हालांकि उन्हें अपने काम में मजा आता है, फ़िर भी वे एक पत्नी और माँ बने रहना ज्यादा पसन्द करेंगी। `अच्छा होता, मैं डॉक्टर न होती।´ वे कहती हैं।
मेगन बताती हैं कि उनके देश में हुए अधिकांश जनमत सर्वेक्षण ही बताते हैं कि अब ज्यादा से ज्यादा महिलाएं अपने जीवन के बेहतर वर्षों को घर और बच्चो के लिए प्रयुक्त करना चाहती हैं यहां तक कि वे युवा अविवाहित लड़कियां भी , जिन्होंने अब तक की जरूरतों का स्वयं अनुभव नहीं किया है, कहती हैं कि वे करियर की सीढ़ियां चढ़ने की बजाय परिवार की देखभाल में समय लगाना अधिक पसंद करेंगी।
लेकिन असल चुनौती यहीं उत्पन्न होती है। क्या स्त्री पढ़-लिख कर काम न करे? अपने ज्ञान, प्रतिभा, योग्यता सब को चूल्हे चौके में झोंक दे? और अगर वह ऐसा कर भी दे, तो उन आर्थिक जरूरतों की पूर्ति कैसे होगी, जो दिन व दिन बढ़ती जा रही हैं। और यहीं मेगन एक नई बात कहतीं हैं , सुझाती हैं कि शिक्षित, प्रतिभा संपन्न और दक्ष महिलाओं के लिए बेहतर विकल्प यह है कि वे अपनी योग्यताओं का इस्तेमाल अपने पतियों के करियर के उन्नयन में करें। ऐसा करने से न तो उनकी योग्यताओं का अपव्यय होगा, न उन्हें ठाले रहने का मलाल होगा और न बेहतर जिन्दगी जीने के अपने सपनों में कतर-ब्योंत करनी पड़ेगी। काम के मोर्चे पर पति की कामयाबी में पति की सहयोगी बनकर स्त्री कुछ भी खोये बगैर सब कुछ प्राप्त कर सकती है। आज की स्त्री को मेगन की सलाह है कि वह एकल स्टार बनने की बजाय मजबूत टीम की सदस्य बने। और यही वजह है कि उन्होंने इस किताब के शीर्षक में बिहाइंड की जगह बिसाइड शब्द का प्रयोग किया है।

राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट दिनांक ५अक्टूबर २००८ के पृष्ठ २ से साभार

1 comment:

  1. यह लेख बहुत अच्छा लगा , अगर महिला नौकरी नही कर रही तब उसकी भूमिका अपने पति और परिवार के छूटे हुए कार्यों को सुधारने में लगनी चाहिए ! शिक्षित गृहस्वामिनी के पास बच्चों के सतत विकास हेतु स्कूल और कॉलेज से सम्बंधित समस्याएं और घर की व्यवस्था, बाज़ार का कार्य ही इतना होता है कि मेहनत में पुरुषों के मुकाबले दोगुना पड़ेगा !
    आज कल अधिकतर महिलाएं शिक्षित, दक्ष और प्रतिभावान ही हैं, मगर बहुत कम पति या पत्नी इस योग्यता का इस्तेमाल अपने कैरिअर उन्नयन में कर पाते हैं, शायद पत्नी से सहयोग लेने में पुरूष की हीन भावना कहीं आड़े आती होगी ! और अगर ऐसा न हो तो निस्संदेह दक्ष पत्नियाँ, पति के लिए बेहतरीन सहायक सिद्ध हो सकती हैं !
    एक अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद !

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