दीपोत्सव
घर-घर दमकें मानिक मोती,
घर-घर ईश वन्दना होती।
घर-घर जगमगाय रही जोती,
हर घर लक्ष्मी पूजा होती।
लक्ष्मी और गोवर्धन पूजा,
भाई बहिन सा नाता न दूजा।
सबसे मोहक जैसे चूजा,
हर्ष से सारा घर है गूंजा।
बच्चे चलाते चकरी पटाके,
धायं-धायं और धायं धमाके।
स्वयं हंसे औरों को हंसा के,
बच्चे करते बहुत तमाशे।
अंधियारी हो भले ही रात ,
दीप ज्योति से लगे प्रभात।
दीपावली सिखाती बात,
उन्नति सब मिल करें हठात।
सत्य असत्य पर विजय है पाता,
धर्म अधर्म से आगे आता।
अनाचार का नाश हो जाता,
दीपावली का पर्व बताता।
बच्चे सबके मन को भाते,
मनोबल सबका बहुत बढ़ाते।
पत्थर दिल को भी पिघलाते,
दीपोत्सव का पर्व मनाते।
धर्म, कर्म और शिक्षा- विवेकानन्द के सन्दर्भ में
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शिक्षा मानव विकास के लिए आधारभूत आवश्यकता है। इस तथ्य पर सार्वकालिक
सर्वसहमति रही है। शिक्षा के आधारभूत सिद्धांतों को लेकर विभिन्न समाजों में
मतान्तर रहा...
1 week ago
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