Sunday, January 5, 2014

२०० वां शतक

मित्रो, अक्टूबर २००७ से इस ब्लोग पर कार्यरत हूं. आज २००वां 

शतक अर्थात २००वीं पोस्ट प्रस्तुत है-


जीवन-पथ काव्य संग्रह से साभार


कवि- एक परिभाषा


कहो न कविवर मानव हृदय कैसे कवि बन जाता है।
एक लड़ी में पिरों भावों को जन-जन को हर्षाता है।।
भले शब्द न मिलें कवि को बस अन्तर्मन की पीर मिले।
मननशील और व्यथित हृदय सदा संवेदनशील  मिले।
जड़ जगत के कण-कण में भी प्राणों का आभास मिले।
मरुस्थल के तपते आँचल में सदा साँस की आस मिले।
तिरस्कार को समझ स्वागत मानव जब अपनाता है।
तभी से समझो प्रिय बन्धु! मानव कवि बन जाता है।।

मुक्तक

हैं भावना के थाल में जब चेतना के दीप जलते।
संवेदना की गोद में अनुभूतियों के राग पलते।
दर्द दुनिया का सहलाने की कला जब सीख लेते-
तब ही जन्म लेती कविता और मधुरतम गीत बनते।।
               कवि - श्री रामफल सिंह खटकड़
                     हिन्दी प्राध्यापक
                     गाँव व डाकघर- खटकड़, जीन्द-126115

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