Monday, January 20, 2014

कहो, कोयल कैसे फिर गाए?

बसन्त यहाँ कैसे फिर आए??


बैठने को जब डाल नहीं है, कहो, कोयल कैसे फिर गाए?
निरापद जब कोई राह नहीं है, बसन्त यहाँ कैसे फिर आए??
शिक्षालयों में डिग्री बिकतीं,
आश्रमों में हैं नारी लुटतीं।
गुरू जी ही हैं नकल कराते,
फर्जी उनकी उपस्थिति लगती।
समलैंगिकता अधिकार बने तो, प्रकृति कैसे फिर बच पाए?
निरापद जब कोई राह नहीं है, बसन्त यहाँ कैसे फिर आए??
न्यायाधीश ही इज्जत लूटें
नायक ही हैं देखो झूठे।
शिक्षा ही जब मूल्यहीन हो,
आशा किरण कहाँ से फूटे?
नर-नारी संघर्ष रहें करते, परिवार कहो कैसे बच पाए?
निरापद जब कोई राह नहीं है, बसन्त यहाँ कैसे फिर आए??
काँटों का संरक्षण करते,
गलत काम से नहीं हैं डरते।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे,
आस्था का आडम्बर करते।
कर्तव्य नहीं, अधिकार चाहिए; राष्ट्रप्रेमी कैसे बच पाए?
निरापद जब कोई राह नहीं है, बसन्त यहाँ कैसे फिर आए??

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