मनोज के सामने जिम्मेदारी फिक्स करने का मसला नहीं था। काम न करने के बहाने खोजने वालों में मनोज न था। किस काम के लिए कौन जिम्मेवार है? इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि काम श्रेष्ठतम गुणवत्ता के साथ पूरा हो। मनोज अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने से भागने वाला इंसान भी नहीं था। निसन्देह! अपने बेटे की सुरक्षा व संरक्षा व विकास के अवसर उपलब्ध करवाने के लिए वह ही जिम्मेदार था। तलाक के बाद माता और पिता दोनों की जिम्मेदारी उसकी ही थी। अपनी इसी जिम्मेदारी में सहयोग प्राप्त करने के लिए ही उसने शादी की थी किन्तु वह शादी नहीं, वह तो उसके जीवन को बर्बाद करने का आधार तैयार हो गया था। अब उसके पारिवारिक जीवन का कोई मतलब नहीं रह गया था। परिवार का तो कहना ही क्या? उसके माता-पिता और बेटे का मनोज के साथ रहना लगभग असंभव हो गया था। जिस औरत ने रूपये के लिए शादी की थी, उसके लिए सम्बन्धों का क्या मतलब था? वह औरत कलह प्रिय और अच्छी होने का नाटक करने को तत्पर रहती थी। मनोज के स्थान पर और कोई रहा होता तो शायद आत्महत्या भी कर चुका होता। उस कठिन दौर में यदि मनोज को भी अपने माता-पिता और बहन का साथ न मिला होता तो शायद मनोज परिस्थितियों से पलायन कर चुका होता। माया का वहाँ होना ही मनोज के लिए असह्य और तनाव पैदा करने वाला था। मनोज को नहीं मालुम था कि माया कब क्या कर बैठ? जो स्त्री अपने तथाकथित पति की उपस्थिति में अपने प्रेमी से बात करती हो। उसके बारे में क्या कल्पना की जा सकती है। दूसरी ओर उसका प्रेमी बार-बार वहाँ आकर मनोज से मिलने का आग्रह कर रहा था।
मनोज का बेटा प्रभात उसके सामने भूखा घूमता रहता था किंतु मनोज कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था। इससे ज्यादा वेदना किसी संवेदनशील पिता के लिए क्या हो सकती थी। हाँ! मनोज को उन दिनों को याद करके अभी भी आश्चर्य होता है कि उसके बेटे ने कितनी समझदारी दिखाई और मनोज से कभी किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं की। यहाँ तक कि वह मनोज के तनाव को कम करने का ही प्रयास करता। प्रभात समझता था कि उसका पिता स्वयं कितने तनाव में है। वह यह भी जानता था कि उसका पिता स्वयं भूखा रहकर पूरे दिन काम करता रहता है। ऐसी स्थिति में प्रभात का भी दुःखी होना लाजिमी था। दोनों बाप-बेटे एक-दूसरे से कुछ न कहते थे किन्तु एक-दूसरे की आन्तरिक वेदना को अच्छी तरह से समझते थे। विद्यालय जाने से पूर्व ड्रेस पहने हुए उसका चावल बीनना अभी भी याद आता है। यदि प्रभात चावल बीनकर रखकर नहीं जाता तो माया कीड़ों व पत्थर सहित ही चावल उबालकर रख देती। दिन रात आराम फरमाना, अपने प्रेमी से बातों में मशगूल रहना और मनोज पर व्यंग्य करना माया के प्रतिदिन के कार्य थे। यहाँ तक कि रात को सोने से पहले रसोई में झूठे बर्तनों को साफ करके सोना मनोज की मजबूरी थी। ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण मनोज के पारिवारिक जीवन मूल्य आदर्शवाद से प्रेरित थे। पत्नी का गृहणी के रूप में एक देवीय रूप की कल्पना मनोज के मस्तिष्क में थी किंतु यहाँ तो एक राक्षसी आ गयी थी। जो प्रत्यक्ष रूप से खून भले ही न पीती हो किन्तु हर क्षण खून जलाती अवश्य थी। इसके बावजूद दिखावा एक समर्पित पत्नी का करती थी। किसी ने सच ही कहा है बुरा व्यक्ति जब अच्छा होने का दिखावा करता है, तब वह और भी बुरा हो जाता है।
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