4.10.2007
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएँगे।
कोई साथ चले न चले, हम आगे बढ़ते जाएँगे।।
स्वार्थ को लेकर नहीं चलेंगे,
ईर्ष्या, द्वेष भी नहीं फलेंगे।
सुविधाओं की चाह न हमको,
हम सबसे मिलाते हाथ चलेंगे।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे, हम चलकर दिखलायेंगे।
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएँगे।।
कौन है अपना? कौन पराया?
हमने सबको गले लगाया।
हमको तो बस, आस जगानी,
जो भी चेहरा है मुरझाया।
हम नगण्य हैं, क्या कर सकते? हँसेगें और हसाँयेंगे।
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएँगे।।
शिक्षा ही शक्ति है अपनी,
हमें न धर्म की माला जपनी।
पद, धन, यश्, संबन्धों में फँस,
हमें न किसी की खुशी हड़पनी।
संघर्ष् ही है जीवन अपना, कर्म करें, मर जायेंगे।
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएँगे।।
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