4.15.2007
सुबह सबेरे योगा करते, ध्यान में नाम आपका जपते।
स्नानागार में है फिर जाते, हम आपको ही नहलाते।
काम करें या खाना खाते, गीत आपके हर पल गाते।
सपने हमको जब-जब आते, साथ में अपने आपको पाते।
नयनों से खुद घायल करके, हमको पागल बतलाती हो।
पागल करके राह में छोड़ा, प्रेम ये कैसा जतलाती हो।
पागल हैं हम मारो पत्थर, जी अपना क्यों बहलाती हो।
पत्थर भी स्वीकार हमें हैं, क्यों पागलखाने पहुँचाती हो।
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