Tuesday, November 18, 2014

हमने ही था सपना देखा, प्रेम आपका है ही नहीं

4.14.2007

साथ आपका मिलता कैसे? रिश्ता आपसे है ही नहीं।
जो भोगा है, कर्म  हमारे, दोष  आपका है ही नहीं।।
भावनाओं में हम बहते रहते।
दण्ड  निरन्तर सहते  रहते।
जाने कब  था  सपना देखा,
आपको अपनी कहते  रहते।
हमने ही था  सपना  देखा, प्रेम आपका है  ही नहीं।
जो भोगा है, कर्म  हमारे, दोष  आपका है ही नहीं।।
हमने प्रेम को जैसा  समझा।
अर्थ आज फिर उसका उलझा।
प्रेम प्रदर्शन  नाटक जैसा, 
आधुनिक अर्थ  यही है सुलझा।
पागल थे हम समझ न पाए, अपना जहाँ में है ही नहीं।
जो भोगा है, कर्म  हमारे, दोष  आपका है ही नहीं।।
भावों  से  ही  रिश्ता  बनता
जोड़ घटा का गणित न चलता।
मैं और तू का  भाव मिटे जब,
समर्पण होता, प्रेम है फलता।
बुद्धिमानी ने तुम्हें रूलाया, दिल तो आपके है ही नहीं।
जो भोगा है, कर्म  हमारे, दोष आपका है ही नहीं।।
आपकी  नजरों में  हम पागल।
आपकी  ही नजरों से  घायल।
प्रेम  में  हमको मौत मिले बस,
बजती  रहें आपकी   पायल।
खुशियों से तुम नाँचों-गाओ, ख्याल हमारा है ही नहीं।
जो भोगा है, कर्म  हमारे,दोष आपका है ही नहीं।।

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