Tuesday, November 4, 2014

एक कविता रोज

3.18.07
तेरे नाम से जिन्दा हैं हम, तेरा नाम ले मर जायेंगे।
अपनी खुशियाँ जान न पाए, तेरी खुशियों में गायेंगे।
जिसको चाहे, उसको पाये, खुशियाँ तुझको गले लगायें,
फूले-फले परिवार तुम्हारा, तन्हाई को हम ही पायें।

 3.19.07
साथ भले ही ना मिल पाया, तुमको नहीं भुला पायेंगे।
जीना पड़े भले ही कितना? गीत तुम्हारे ही गायेंगे।
तुमने लिखा था एक बार, जनम-जनम का साथ हमारा।
संयम, धैर्य और साहस से पथ निष्कंटक बने तुम्हारा।
मस्त, व्यस्त और स्वस्थ रहो, स्मरण न करना कभी हमारा।
एकल पथ है, बढ़ना होगा, हम हिय में तुम्हें बसायेंगे ।

3.20.07
जगते, सोते और सपने में हम तुम्हारे ई-मेल पढ़ेगे।
महफिल में रहकर भी तुम बिन तन्हाई को हम झेलेंगे।
तुमको अमृत मिलता हो तो, पीना पड़े हम बिष पी लेंगे।
खिलखिलाहट बनी रहे तुम्हारी, मौन रहें हम मुँह सीं लेंगे।
चाहत ही जब धोखा दे तो, जीवन में क्या कुछ पायेंगे।
साथ भले ही ना मिल पाया, तुमको नहीं भुला पायेंगे।

3.21.07 
हर  चोट  सह  मुस्काएँ, मनमौजी  हम  हैं  मतवाले।
पारदर्शी तुम बन नहीं सकतीं, प्यार में चलते नहीं घोटाले।
खत जलाए, खता नहीं कुछ, जब दिल ही के टुकड़े कर डाले।
ठण्डी आग में जलते रहें, बस तुम्हें मिलें खुशियों के प्याले।
तुम बिन किसके सपने देखें, किसके साथ हम चल पायेंगे।
साथ भले ही ना मिल पाया, तुमको नहीं भुला पायेंगे।

3.22.07
न है चाहत, न है नफरत, न है अग्नि पश्चाताप की।
आपके  थे, आपके  हैं, हम  दौलत  रहेंगे  आपकी।
डाँटों, गालियाँ दो, दुत्कारो, चाहे जितने खत फाड़ो;
लिखा था, लिख रहे हैं, लिखते रहेंगे, हम तो यादें आपकी।

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