4.20.2007
आपकी वो बातें, चन्द मुलाकातें, आज याद आती हैं।
चलने की अदायें, मुस्कराने की कलायें, बहुत याद आती हैं।
नित-नई केश्-सज्जा, आँखों की लज्जा, प्रिये याद आती है।
आपकी वो घातें, साथ-साथ रातें, पल-पल याद आती हैं।
जब छोड़ना ही था हाथ फिर पकड़ा क्यों था?
जब रूलाना ही था हमें, फिर हँसाया क्यों था?
जाना ही था बेवफा, हमारी जान ले के जातीं,
तड़पाने को पल-पल हमें जिलाया क्यों था?
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