4.4.2007
प्रेम की राह कँटीली होती, शायद आप समझ अब पाए।
प्रेम समर्पण ना कर पाए, ना प्रेम की कद्र आप कर पाए।
आपने भले ही झूँठ कहा था, हम तो उसको समझ न पाए।
मित्र कहा तो छोड़े नहीं हम, भले ही मित्र,पल-पल ठुकराए।
हमने अपने गाने गाए, आपने अपने ढोल बजाए।
केरल में क्या-क्या होता है? आपने हमको पाठ पढ़ाए।
सत्य और हितकर पर देखो, विचार नहीं बिल्कुल कर पाए।
तुमने हमको समझा नहीं था, हम भी तुमको समझ न पाए।
प्रेम के पथिक नहीं थे सच्चे, अहम् तभी तो आड़े आया।
मिलने को थी बहानों की तलाश्, भय ने पीछे तुम्हें हटाया।
सुविधाओं की अभ्यस्त आप, प्रेम का जोखिम नहीं उठाया।
प्रेम-मार्ग के काँटे तजकर, समझौते को गले लगाया।
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