Thursday, November 6, 2014

जानते थे प्यार किसी और से करती रही हो, करती रहोगी,

3.29.07

हमको मंजिल पता नहीं है, आपकी कोई खता नहीं है।
मार्ग कौन सा हम क्या जानें? वृक्ष है केवल लता नहीं है।
आपको खुशियाँ मिल जाएं, मिट जायें हम, अदा नहीं है।
तड़प रहे हैं जाने कब से? लिख दे खत, अब सता नहीं है।

3.30.07

तुम चली गई हो,
बहुत दूर,
बहुत-बहुत दूर
मुझसे,
वस्तुतः
तुम पास थी हीं नहीं कभी,
झूँठा सपना था,
वह, लेकिन मीठा था ख्वाब,
जो तुम्हारे लिए,
केवल था एक खेल,
दिलों को तोड़ने का।

3.31.07

हरी-हरी हरियालियाँ, अब भी याद आती हैं।
कण्ठ की शहनाईयाँ, अब भी याद आती हैं।
आपकी वो जुल्फें, सूरज से मुँह छिपाना,
खिलखिलाहट, मुस्कानें, अब भी याद आती हैं।

आपकी वो चाहतें, अब भी याद आती हैं।
अली जी की आहटें, अब भी याद आती हैं।
हमारे दिल में बसना, स्वागत इस तरह करना,
चिकनी-चिकनी घाटियाँ अब भी याद आती हैं।

4.1.2007

आज है अप्रैल पहली, हर रोज ही मूरख बनाया आपने।
दिखाया प्यार का झाँसा, दोस्ती का तमगा भी पहनाया आपने।
जानते थे प्यार किसी और से करती रही हो, करती रहोगी,
दोस्ती के नाम को भी इस तरह, पलीता लगाया आपने।
बता सकोगी आज क्या? दोस्ती किसको हैं कहते?
दोस्त को यूँ ठुकरा के, खुद भी तन्हाई को सहते।
वह दोस्त कैसा? हाल भी जो दोस्त का ना जान पावे,
आप ही बतला दो कब तक रहेंगे यादों को कहते।





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