4.19.2007
दिन तो काम में कट जाता प्रिय, नींद न आए रातों को।
कण्ठ लगाना कहाँ भाग्य में हम तड़प रहे हैं बातों को।
किंकर्तव्यविमुढ़ हुए हम, जब पास हमारे आईं थीं।
चखकर तुमने फेंक दिया, हम तड़प रहे उन हाथों को।
झलक दिखाकर चलीं गईं प्रिय, हम मलते अपने हाथ रह गए।
हमें अकेला छोड़ गई हो, आपके, आपके साथ रह गए।
फुटबाल बने हम, ठोकर किस्मत, आपका कोई दोष नहीं।
आप तो हैं महलों की रानी, हम कीचड़ में पड़े रह गए।
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