Monday, December 7, 2015

इजाजत नहीं है

वतन में जुगनू को चमकने की इजाजत नहीं है ,

गुलाब के फूलों को महकने की इजाजत नहीं है ,

राह में दुश्मनों ने बिछाया है जाल  इस तरह से

जिनको देख कर मुस्कराने की इजाजत नहीं है।  


जब से आदमी ने जिन्दगी का तमाशा बनाया  है ,

तब से  हकीकत को समझने की इजाजत नहीं है,

दहशत ने कदम बढ़ाया है आजकल हर इलाके में,

इसलिए हमें अधिक चहकने की इजाजत नहीं है । 


सियासी एकता ने पूरी तरह जकड़ रखा है मंच को,

हर किसी को वहाँ तक पहुँचने की इजाजत नहीं है ,

मजहब को कैद  कर रखा है समाज के ठेकेदारों ने ,

मगर किसी तरह इन्हें परखने की इजाजत नहीं है । 


बेचारी आबरू  बिक रही है  जिन दरिंदों के शहर में ,

पकड़ उनको फाँसी पर लटकाने की इजाजत नहीं है,

निगाहों के सामने रोज होते रहते हैं  तमाम हादसे ,

'
आनंद' के साथ जिन्हें कुतरने की इजाजत नहीं है ।

06-12-2015    
गजलकार- रामप्रीत आनंद (एम॰ जे॰ )
                      जनवि॰  पचपहाड़ , राज ॰

1 comment:

  1. आप किसी की इजाजत की भीख क्यों मांग रहे हैं? रामप्रीत जी! आप एक स्वतन्त्र सत्ता हैं आप किसी से सुविधायें मत मांगिये और आपको इजाजत मागने की भी आवश्यकता नहीं है!

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