Wednesday, October 22, 2025

दीपावली पर दोहा छंद...

 दीपोत्सव की रात में, मन का दीप जलाय।

ज्ञान ज्योति आलोक दे,  सत की राह दिखाय।

 

दीपों की रोशनी से, जगमग हो संसार।

अंधकार को दूर कर, फैले प्रेम अपार।

 

ज्ञान का दीप जलाकर, हम पाएं सुख संत।

दीप मालिका दीप से, फ़ैले ज्ञान अनंत।

 

प्रेम, ज्ञान आलोक से, दीप जलाएं नीर।

प्रकाश पर्व की रात, बढ़े प्रेम की धीर।

Tuesday, October 21, 2025

अज्ञान को दूर भगाएं

 

ज्ञान दीप जलाएं

 

ज्ञान का दीप जलाएं,

अज्ञान को दूर भगाएं।

जीवन को नई दिशा दें,

सत्य की राह चलाएं।

 

मन को शुद्ध बनाएं,

प्रेम का संदेश फैलाएं।

ज्ञान की शक्ति से जगमग,

अंधकार को दूर भगाएं।

 

आओ हम सब मिलकर,

ज्ञान का दीप जलाएं।

सत्य और प्रेम की जीत हो,

अज्ञान का अंधकार भगाएं।

 

दीपावली की शुभ रात,

ज्ञान का दीप जलाएं।

अज्ञान को दूर भगाएं,

सत्य की राह पर चलाएं।

 

दीपों की रोशनी से जगमग,

अंधकार को दूर भगाएं।

प्रेम और ज्ञान का संदेश,

हर दिल में फैलाएं।

 

दीपावली का त्योहार,

आओ आज मनाएं।

ज्ञान का दीप जलाकर,

अज्ञान को दूर भगाएं।

Saturday, October 18, 2025

नाम छोड़कर दीपावली पर

 जन सेवा के दीप जलाएं

           



राम जी के आदर्श संजोएं।

कर्म करें और खुशियाँ बोएं।

सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह,

ब्रह्मचर्य को साध के सोएं।


नहीं किसी का दिल है दुखाना।

महनत कर है खाना खाना।

नहीं किसी के जाल में फसना,

नहीं किसी को है ठुकराना।


रूठे हुओ को हमें मनाना।

प्रेम से दिल के दीप जलाना।

अपने अपने गान छोड़कर,

समूह गान हम सबको गाना।


प्रतीकों से है आगे बढ़ना।

नहीं किसी पर दोष है मढ़ना।

छल, कपट, नफरत को तज,

निष्ठा, विश्वास की सीढ़ी चढ़ना।


नहीं किसी को विजित है करना।

नहीं किसी का मान है हरना।

हार-जीत से आगे बढ़कर,

सबका दिल खुशियों का झरना।


राम के केवल गीत न गाएं।

आदर्शों को हम अपनाएं।

नाम छोड़कर दीपावली पर,

जन सेवा के दीप जलाएं।


Wednesday, October 15, 2025

नर-नारी मिल दीप जलाएं।

 नर-नारी मिल दीप जलाएं

            


दीपावली पर दीप जलाएं।

अंतर्मन को हम महकाएं।

सहयोग, समन्वय व सौहार्द्र से

नर-नारी मिल दीप जलाएं।


शब्द वाण से दिल न जलाएं।

नफरत को हम जड़ से मिटाएं।

इक दूजे का हाथ थाम कर,

नर-नारी मिल दीप जलाएं।



दिल से दिल मिल गीत सुनाएं।

खुद सीखें, औरों को सिखाएं।

ज्ञान को व्यवहार में लाकर,

नर-नारी मिल दीप जलाएं।


आचरण अपना शुद्ध बनाएं।

भूल किसी को नहीं लुभाएं।

धोखे, कपट, षड्यंत्र से बच,

नर-नारी मिल दीप जलाएं।


पथ में सबका साथ निभाएं।

जीवन खुषियों से महकाएं।

धोखे और कपट से प्यारे,

नर-नारी मिल दीप जलाएं।


अपने-अपने गीत न गाएं।

कमजोरों को ना ठुकराएं।

अकेले-अकेले चलोगे कब तक?

नर-नारी मिल दीप जलाएं।


साथ पाएं और साथ निभाएं।

नहीं किसी को हम ठुकराएं।

कमों के फल अवष्य मिलेंगे,

नर-नारी मिल दीप जलाएं।


जल, जंगल और जमीन बचाएं।

मानवता को मिल महकाएं।

नारी का सम्मान करें हम,

नर-नारी मिल दीप जलाएं।



कोई पुतला नहीं बनाएं।

कोई पुतला नहीं जलाएं।

इक दूजे को प्रेम करें

इक दूजे को गीत सुनाएं।


केवल पूजा नहीं करेंगे।

नहीं किसी का चीर हरेंगे।

षिक्षा और सयंम के द्वारा,

मिल सबको भय मुक्त करेंगे।


साथ जीएं और साथ निभाएं। 

अपने-अपने गीत न गाएं।

समझ,समन्वय और सयंम से,

विजयादषमी पर्व मनाएं।


प्रकृति को था राम ने पूजा।

सभी एक हैं, नहीं काई दूजा।

पर्यावरण के सभी घटक हैं,

सिंह हो या फिर हो चूजा।


शक्ति साधना करनी सबको।

मिल विकास करना है हमको।

नारी का नर करे समर्थन,

नारी शक्ति देती है नर को।


नव देवी तक नहीं हों सीमित।

हर देवी का सुख हो बीमित।

षिक्षा, शक्ति, अवसर बेटी को,

मिल कर करेंगे,विकास असीमित।


पूजा के वष गीत न गाएं।

देवी तक सुविधा पहुँचाएं।

नारी विजय का पथ प्रषस्त कर,

विजया दषमी पर्व मनाएं।


कुप्रथाओं से मुक्त आज हों।

नारी से ही सभी काज हों।

नर-नारी नहीं भिन्न-भिन्न हैं,

दोनों से सब सजे साज हैं।


मिलकर आगे बढ़ना होगा।

प्रेम दोनो का गहना होगा।

इक-दूजे का हाथ थामकर,

आनंद की सीढ़ी चढ़ना होगा।


Wednesday, October 8, 2025

साथ-साथ हम रहें अकेले

साथ-साथ हम रहें अकेले

                                 


तुम्हारे लिए हम जीना भूले, साथ न तुम्हारे ख्वाब हैं।

साथ साथ, हम रहें अकेले, अलग तुम्हारा हिसाब है।।

प्रदर्शन है तुम्हारा दर्शन।

चाहत है गैरों का वर्जन।

प्रेम भावना मरी तुम्हारी,

जिंदा ना कर पाए सर्जन।

शिक्षा नहीं, कुछ तथ्य रट लिए, कमाया झूठा ताब है।

साथ साथ, हम रहें अकेले, अलग तुम्हारा हिसाब है।।

अपने पैरों खड़ी हो प्यारी।

पथ चलते करती हो यारी।

सोशल मीडिया की लाइक ने,

बर्बाद करी परिवार की पारी।

धन को ही सब कुछ स्वीकारा, स्वार्थ का वश सैलाब है।

तुम्हारें साथ, हम रहें अकेले, तुम्हारा अलग हिसाब है।।

सबके साथ हो घुलती मिलती।

गैरों से जबरन, रिश्ते सिलती।

गैरों के लिए सजती हो तुम,

आँख दिखाती, पति पर पिलती।

नहीं चाहिए साथ पति का, धन ही केवल आब है।

साथ साथ, हम रहें अकेले, अलग तुम्हारा हिसाब है।।

हमको हरदम तुम भाती हो।

गैरों के गान, तुम गाती हो।

विश्वास नहीं, अभी भी मुझ पर,

पल-पल मुझको ठुकराती हो।

नौकरी की चाहत है हरदम, पढ़ती नहीं किताब है।

साथ साथ, हम रहें अकेले, अलग तुम्हारा हिसाब है।।

 

Tuesday, September 30, 2025

देवीय गुणों को विकसित करके

 अखिल विश्व की पीड़ा हर लो

                                            


नारी तुम, देवी शक्ति हो, खुद से खुद को जाग्रत कर लो।

देवीय गुणों को विकसित करके, अखिल विश्व की पीड़ा हर लो।

युगों-युगों से महिमा तुम्हारी।

कम नहीं होगी गरिमा तुम्हारी।

अणिमा शक्ति है छायी जग में,

भक्त पूजते प्रतिमा तुम्हारी।

नव रात्रि में जन-जन पूजे, जग को गढ़ती, खुद को गढ़ लो।

देवीय गुणों को विकसित करके, अखिल विश्व की पीड़ा हर लो।

भटक रहीं क्यों अपने पथ से?

शासित क्यों होती हो नथ से?

मातृ रूप में सदैव हो पूजित,

उतरो नहीं जीवन के रथ से।

अनाचार, व्यभिचार बढ़ रहा, आततायी के मन को पढ़ लो।

देवीय गुणों को विकसित करके, अखिल विश्व की पीड़ा हर लो।

परिवार को, बाँधों फिर से।

अन्याय को काटो सिर से।

जीवन मूल्य पल-पल परिवर्तित,

सावधान कुछ कर लो थिर से।

वीर प्रसू तुम, भारत माँ हो, संतति चढ़ी, अब तुम भी चढ़ लो।

देवीय गुणों को विकसित करके, अखिल विश्व की पीड़ा हर लो।


Sunday, September 28, 2025

जीवन पीछे छूट गया है।

 जीवन पीछे छूट गया है
             


मन मीत अब रूठ गया है।

जीवन पीछे छूट गया है।।


नहीं, चाव अब मिलने का है।

नहीं, चाव अब चलने का है।

नहीं, रहे अब पंख पैरों में,

अभिसार स्थल की,

यादें ही शेष हैं।

प्रकृति भी दिखती नहीं,

पल-पल बदलती वेश है।

ना है, वियोग का अहसास,

न ही, विछड़न की टीस है,

सब कुछ स्थिर सा,

ना उन्नीस और ना ही बीस है।

सरलता पर षड्यंत्र जीत गया है।

            जीवन पीछे छूट गया है।।


अकेले रहने की, 

अब आदत हो गयी है,

सुख-दुख से क्या है?

अब समझ ही नहीं आता,

कोई फर्क नहीं पड़ता,

जिन्दगी ही, 

अब आफत हो गयी है।

जो भी हो रहा है,

वही स्वीकार है,

वही सही है

नियंत्रण करने या

बदलने की,

ना तो इच्छा है और

ना ही क्षमता।

तुम्हारे बिना।

सब कुछ रीत गया है।

जीवन पीछे छूट गया है।।


संग साथ के, 

सपने तो क्या?

अब तो याद भी नहीं आती।

ना तो लिखने की इच्छा है,

ना ही शेष है कोई चाह,

अब कोयल गीत नहीं गाती।

क्योंकि

अब आती नहीं, तेरी पाती।

बुझ रहा दीया,

और जल रही बाती।

जीवन से निकल गीत गया है।

जीवन पीछे छूट गया है।।


नव रात्रि के,

इस शुभ अवसर पर

मैं सोचता हूँ,

देवी का अंश तो, 

हर स्त्री में व्याप्त है।

संपूर्ण प्रकृति ही

देवी स्वरूप है।

तो फिर किसी प्रतिमा की, 

क्या आवश्यकता?

जब प्रकृति के कण-कण में, 

तुम्हीं व्याप्त हो

तो तुम्हारे पास जाने,

या तुम्हारे भौतिक शरीर को

पास आने की क्या आवश्यकता?

मैं भी प्रकृति का अंश हूँ।

तुम मुझमें भी व्याप्त हो।

व्यष्टि के ऊपर,

समष्टि रूप जीत गया है।

जीवन पीछे छूट गया है।।


मैं पूजा नहीं करता,

किसी प्रतिगा की,

मुझे शरीर की नहीं,

साधना करनी है,

तुम्हारी आत्मा की।

तुम्हारी आत्मा,

मेराी आत्मा में व्याप्त है,

काश!

मैं तुम्हें प्रसन्न रख पाता,

न रहता मैं अप्रसन्न,

ना निराशा के गीत गाता।

समर्पित देवी के लिए,

जो नर 

समर्पित नहीं हो जाता,

कैसे प्रसन्न रहेगा वह,

कैसे प्रसन्न होगी?

उससे माता।

हर नारी माता है।

मातृत्व सृष्टि का आधार है।

मातृत्व के बिना,

यह सृष्टि निराधार है।

जीवन जिया नहीं,

तुम्हारे बिना बीत गया है।

जीवन पीछे छूट गया है।।


Thursday, September 25, 2025

साकार देवी का पूजन

 साकार देवी का पूजन

                                  © डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी


नारी का योगदान स्वीकारें, सुक्खों से निज झोली भर लें।

प्रतीकों को छोड़ आज हम, साकार देवी का पूजन कर लें।।

शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा देकर।

स्वावलंबन दे, योगदान लेकर।

नारी ही है, कुशल प्रबंधक,

समझें नहीं, उन्हें केयर-टेकर।

नारी नहीं, उनके काम सराहें, दुष्प्रवृत्तियों को वश में कर लें।

प्रतीकों को छोड़ आज हम, साकार देवी का पूजन कर लें।।

जिसने जीवन हमें दिया है।

दूध पिलाकर बढ़ा किया है।

मेरे व्रत हैं उन्हें समर्पित,

कदम-कदम, दुलार दिया है।

सहयोगी है, मित्र भी नारी, साथ-साथ चल यात्रा कर लें।

प्रतीकों को छोड़ आज हम, साकार देवी का पूजन कर लें।।

बहन और बेटी देवी है।

पत्नी, नहीं कोई लेवी है।

हर नारी में देवी रूप है,

सेवक को देवी सेवी है।

साथ-साथ करें साथ समर्पित, साथ-साथ ही साथ को वर लें।

प्रतीकों को छोड़ आज हम, साकार देवी का पूजन कर लें।।

©प्राचार्य, जवाहर नवोदय विद्यालय, कालेवाला, ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद-244601 (उत्तर प्रदेश)

चलवार्ता 09996388169, ई-मेलः santoshgaurrashtrapremi@gmail.com ,

बेब ठिकाना www.rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in,    www.rashtrapremi.webpress.com

 

Wednesday, September 24, 2025

आओ फिर साथ चलें


इतिहास से मुक्त होकर,

पगडंडियों से जरा हटकर,

कुदृष्टियों और उपदेशों  को,

पीछे छोड़,

परिणामों से जरा संभलकर

वर्तमान के साथ चलें।

ले हाथों में हाथ चलें।

आओ फिर साथ चलें।


कौन क्या कहता है?

कौन कहाँ रहता है?

किसकी गलती थी?

किसकी मस्ती थी?

झूठ,छल,कपट से दूर,

प्रश्नों को छोड़ चलें।

उत्तर की ओर चलें।

आओ फिर साथ चलें।


अपना-पराया नहीं,

भिन्न यह काया नहीं,

जकड़े कोई माया नहीं,

पद की ना भूख मुझे,

धन की ना भूख तुझे,

तन्हाई छोड़ चलें।

पथ अपने मोड़ चलें।

आओ फिर साथ चलें।



लुटने का गम नहीं,

टूटेगा मन नहीं,

थका अभी तन नहीं,

प्रेम का नवनीत है,

सृजन करें गीत है,

प्रेम की रीत चलें।

इक-दूजे को जीत चलें।

आओ फिर साथ चलें।


संध्या की वेला है,

सूख गया केला है,

रहा न जाय अकेला है,

कोई गुरु न चेला है

प्रेम पथ अलबेला है,

गाते हुए गीत चलें।

दोनों मिल मीत चलें।

आओ फिर साथ चलें।

 

Sunday, September 21, 2025

प्रेम तुम्हें करता हूँ।

भले ही अकेला रहता हूँ।

प्रेम तुम्हें करता हूँ।


लुटा, पिटा, थका हुआ,

बोझ तले दबा हुआ,

चाह भी मर चुकी,

कामनाएँ जल चुकीं,

पथ में अंधेरा है,

साथ को भी सहता हूँ।

भले ही अकेला रहता हूँ।

प्रेम तुम्हें करता हूँ।

प्रेम नाम ठगा हुआ,

षड्यंत्र में फंसा हुआ,

निरपराध अपराधी हूँ।

कोर्ट में प्रतिवादी हूँ।

जाल में फंसा हुआ,

जुल्म सारे सहता हूँ।

खुद ही बिखरता हूँ।

प्रेम तुम्हें करता हूँ।

जिंदा रहने का संघर्ष है।

मेरी मौत, 

तेरा उत्कर्ष है।

फिरौती चुकाकर,

जीवन मुझे जीना है।

बहाना पसीना है।

हुआ उसे भुलाकर,

पीड़ा में मुस्कराकर,

भावों में बहता हूँ।

भूला तुम्हें कहता हूँ।

प्रेम तुम्हें करता हूँ।

कहीं नहीं जाना है।

नहीं पछताना है।

अपने को बचाने के लिए,

पीछा छुड़ाना है।

ठोकरों से सीखा है,

कपट सत्य सरीखा है।

घातक है वार किया, 

फिर भी मित्र कहता हूँ।

जीने के भ्रम में,

लुटने को हर पल,

तत्पर रहता हूँ।

खुश सदा दिखता हूँ।

प्रेम तुम्हें करता हूँ।

लूटो, जितना लूट सको,

कानून की मार से,

कूटो, जितना कूट सको,

शिकार की रीत यही,

छिपकर वार करो,

खुद के मजे के लिए,

और यार चार करो।

कुछ भी तुमसे पाने की,

चाह नहीं रखता हूँ।

देता सदा दिखता हूँ।

प्रेम तुम्हें करता हूँ।


नफरत नहीं किसी से,

गफलत नहीं है कोई,

वार तुमने किया है,

उसको ही जिया है।

मेरे ही पैसे से,

विष तुमने दिया जो,

अमृत समझ पिया है।

उसे भी पचाया है,

तुमने जो नचाया है।

तन्हाई में भी,

साथ सबके रहता हूँ।

फिर भी हँसता दिखता हूँ।

प्रेम तुम्हें करता हूँ।


Thursday, September 18, 2025

अपने लिए ही जीना है अब

 

समस्याओं से नहीं है डरना।

जीवन है फिर क्यूँ है मरना।

स्वयं कर्मरत, विकास करें हम,

नहीं किसी का चैन है हरना।


समस्या, सुलझा लेंगे हम।

संघर्ष से भी सीखेंगे हम।

एकांत की क्यों चाह करें?

हाथ थाम, अब साथ चलें हम।


शिकवा-शिकायत छोड़ दिए हैं।

दुखो को भी मोड़ दिए हैं।

परंपरा बाधक जो पाईं,

उनको तो हम तोड़ दिए हैं।


अपने लिए ही जीना है अब।

किसी को जाल बिछाया है कब?

जिसने हमसे साथ है माँगा,

उसको साथ दिया है तब-तब।


सबके हित में काम करेंगे।

अपने हित भी नहीं तजेंगे।

नहीं कभी है किसी को लूटा,

लुटे बहुत, अब नहीं लुटेंगे।


नहीं कोई जिद, नहीं झुकेंगे।

विश्राम भले हो, नहीं रुकेंगे।

पथ पर हमको नित है बढ़ना,

थके भले हो, नहीं चुकेंगे।


साथ भले कोई न आए।

करेंगे वही, जो मन को भाए।

चाह नहीं, चाहत नहीं कोई,

सबके हित हैं गाने गाए।


जाल किसी के नहीं फसेंगे।

चाहत से हम नहीं बहकेंगे।

चलना चाहो, चल सकते हो,

चलने से हम नहीं रुकेंगे।


यात्रा ही गंतव्य हमारा।

हित सबका मंतव्य हमारा।

आना चाहो, साथ में आओ,

शेष नहीं ज्ञातव्य हमारा।


परमारथ का नहीं है दावा।

कर्म किए, है स्वारथ साधा।

लेन-देन से चलता है जग,

खा लेंगे मिल आधा-आधा।

 


Wednesday, September 17, 2025

मात-पिता से बढ़कर जग में

 

नहीं कभी कोई, हित होता है



माँ, संतान के साथ है हँसती, रोती है, जब सुत रोता है।

मात-पिता से बढ़कर जग में, नहीं कभी कोई, हित होता है।।

मात-पिता से बनी यह काया।

संतान ही थी, धर्म, धन माया।

खाने को जब रोटी नहीं थी, 

भूखी रह, माँ ने दूध पिलाया।

श्रवण कह हो मजाक उड़ातीं, मातृत्व से ही घर होता है।

मात-पिता से बढ़कर जग में, नहीं कभी कोई, हित होता है।।

मातृत्व से, है, सब मान तुम्हारा।

बदला नहीं है, पर गान तुम्हारा।

मात-पिता से, अस्तित्व जग में, 

कहीं नहीं मैं, सब कुछ हारा।

मात-पिता से अलग करे जो, मित्र नहीं, शत्रु होता है।

मात-पिता से बढ़कर जग में, नहीं कभी कोई, हित होता है।।

अब नहीं तुम्हें है, हमारी जरूरत।

विरोध से हैं, रिश्ते बदसूरत।

हम तो प्रेम की भाषा समझे,

नफरत पाली, तुमने खुबसूरत।

विरोध और विद्वेष पाल, जग में नहीं कोई, खुश होता है।

मात-पिता से बढ़कर जग में, नहीं कभी कोई होता है।।

और नहीं कोई, मैं ही दोषी।

हाथ थामा था, थी मदहोशी।

समझ न पाया, तुम्हें आज तक,

समझा था मैंने, तुम्हें संतोषी।

चाह थी मेरी ज्ञान पाओ कुछ, ज्ञान से नारी का, हित होता है।

मात-पिता से बढ़कर जग में, नहीं कभी कोई, हित होता है।।


Monday, September 15, 2025

बहुत कठिन है सरल होना


बहुत कठिन है सरल होना।

स्वीकार गरल का गरल होना।

असत्य, कपट, षड्यंत्रों के बीच,

ईमानदारी पर गर्व होना।

षड्यंत्रकारी का गरम होना।

                        बहुत कठिन है सरल होना।।

स्वीकार गलत का गलत होना।

मिलावट के युग में खरा सोना।

दिखावे की इस चमक-दमक में,

रोने को पाना, एक शांत कोना।

सत्य विचार का नरम होना।

                        बहुत कठिन है सरल होना।

माता-पिता के साथ होना।

शादी हो अलग, अलग गोना।

अहम, पैसा और शोहरत से बच,

बिस्तर पर जाके मरद होना।

ज्ञान जहाँ हो, भरम होना।

                         बहुत कठिन है सरल होना।

शादी के बाद में भी घर होना।

केमीकल के बिना बीज बोना।

पिज्जा, बर्गर, चाउमीन छोड़,

देसी खाने की अरज होना।

सही करम में शरम होना।

                         बहुत कठिन है सरल होना।

मंदिर में जाकर मुक्त होना।

कर्म के बिना भयमुक्त होना।

धन, पद, यश, संबन्ध मोह में,

मानव मन प्रेम युक्त होना।

विरोधियों का तरल होना।

                        बहुत कठिन है सरल होना।

प्रेमी-प्रेमिका की जात होना।

परिवारीजनों में बात होना।

सोशल मीडिया के दुष्चक्र में,

आमने-सामने गात होना।

पति-पत्नी का मित्र होना।

                        बहुत कठिन है सरल होना।

प्राकृतिक रूप से मौत होना।

मधुरता में कोई सौत होना।

काॅन्वेंट के इस शिष्ट युग में,

सरकारी कर्मी का धौत होना।

                            रसोई में अब खरल होना।

                            बहुत कठिन है सरल होना।


Friday, September 5, 2025

नहीं कोई है अपना यहाँ पर, कोई नहीं पराया है

साथी है जो साथ में चलता 


साथी है जो साथ में चलता, गीत प्रेम का गाया है।

नहीं कोई है अपना यहाँ पर, कोई नहीं पराया है।।

अपना तो जीवन है भटकन।

आभूषण बन जाता लटकन।

आभूषण तो लुटते रहते,

वर्तमान में जीता बचपन।

कोई क्या हमको लूटेगा? खुद ही खुद को लुटाया है।

नहीं कोई है अपना यहाँ पर, कोई नहीं पराया है।।

अगले पल का पता नहीं है।

खुद को खोया, लुटा नहीं है।

भविष्य को तुम क्या जिओगे?

वर्तमान तो जिया नहीं है।

जहाँ हो, जिसके साथ हो, जीओ, जो पल पाया है।

नहीं कोई है अपना यहाँ पर, कोई नहीं पराया है।।

अपने बनकर, हमको  लूटा।

अब तो सबका, साथ है छूटा।

नहीं प्रेम है, नहीं है बंधन!

खुल गए बंधन, टूटा खूँटा।

यात्रा ही गंतव्य हमारा, राह ने साथ निभाया है।

नहीं कोई है अपना यहाँ पर, कोई नहीं पराया है।।


Saturday, August 30, 2025

असफलता ही पाई हमने

 आगे बढ़कर गले लगाया


स्वार्थ पास हमारे आया, हमने तब-तब है ठुकराया।

असफलता ही पाई हमने, आगे बढ़कर गले लगाया।।

अपने आपको तुम पर थोपा।

नहीं सुना, कभी दिया न मौका।

नहीं कभी है किसी को समझा,

चाहा हर दम लगाए चैका।

तुम्हारे बचपन को रौंदा है, केवल अपना गाना गाया।

असफलता ही पाई हमने, आगे बढ़कर गले लगाया।।

बचना अब हमरी छाया से।

सुखी रहो अपनी काया से।

बुद्धिमान हो कर लो मन की,

मुक्त रहो मेरी माया से।

अकेले कोई जीवन होता? पाओ तुम, मैंने ना पाया।

असफलता ही पाई हमने, आगे बढ़कर गले लगाया।।

तुम्हारे ऊपर कोई कर्ज नहीं है।

सुनना तुम कोई अर्ज नहीं है।

मुक्त कर रहा खुद से तुमको,

हमारे लिए कोई फर्ज नहीं है।

चाह न समझी कभी तुम्हारी, नहीं किया जो तुमको भाया।

असफलता ही पाई हमने, आगे बढ़कर गले लगाया।।


Friday, August 29, 2025

समस्याएँ नहीं गिनो तुम,

 समाधान बन आगे आओ


कर्म से अपनी राह बनाकर जीवन अपना सुखी बनाओ।

समस्याएँ नहीं गिनो तुम, समाधान बन आगे आओ।।

कर्मशील को अवसर जग में।

कदम-कदम संसाधन मग में।

औरत की हथेली में बरकत,

वही पुरूष के होती पग में।

समय ही जीवन है प्यारे, जीवन आनंद से जीते जाओ।

समस्याएँ नहीं गिनो तुम, समाधान बन आगे आओ।।

समय नहीं है दुखी होने का।

समय नहीं है व्यर्थ सोने का।

काट बाद में तुम पाओगे,

समय अभी है फसल बोने का।

फल ही हैं फूलों की हसरत, फूल देखकर खुशी मनाओ।

समस्याएँ नहीं गिनो तुम, समाधान बन आगे आओ।।

चाहत किसी की पूरी न होती।

पाओगी वही, जो हो बोती।

लेन-देन से चलता है जग,

मुफ्तखोरी कभी सफल न होती।

कर्म करो अधिकार कमाओ, कदम-कदम बढ़ते तुम जाओ।

समस्याएँ नहीं गिनो तुम, समाधान बन आगे आओ।।


Wednesday, August 27, 2025

जन्म दिवस हो तुम्हें मुबारक

 अपने पुत्र के जन्म दिवस 8 अगस्त 2025  के लिए गुजरात यात्रा के दौरान रेलगाड़ी में 7 अगस्त 2025 को लिखी गयी कविता प्रस्तुत है

कर्म क्षेत्र में आगे आओ





सीख रहे हो जग से अब तक, वापस दो अब कुछ सिखलाओ।


जन्म दिवस हो तुम्हें मुबारक कर्म क्षेत्र में आगे आओ।।


पच्चीसवें वर्ष में प्रवेष कर रहे।


षिक्षालयों में अभी रह रहे।


षिक्षा है आजीवन चलनी,


समाज में कितना आगे बढ़ रहे?


देष से पाया, वापस करना, आनंद से आगे बढ़ते जाओ।


जन्म दिवस हो तुम्हें मुबारक कर्म क्षेत्र में आगे आओ।।


चाहत पर जिद, नहीं कभी की।


साथ की इच्छा, पूरी नहीं की।


कठोर तुम्हारे साथ रहा मैं,


पूरी चाहत, नहीं कभी की।


कोई इच्छा प्रकट न करते, कर्तव्य पथ पर बढ़ते जाओ।


जन्म दिवस हो तुम्हें मुबारक कर्म क्षेत्र में आगे आओ।।


 मुझसे नहीं मिला जो तुमको।


मिल जाए वह जग से तुमको।


काम में ही नहीं खो जाना प्रिय!


आनंद से जीना, है अब तुमको।


हर पल, हर पथ, साथ तुम्हारे, सीखो और सिखाते जाओ।


जन्म दिवस हो तुम्हें मुबारक कर्म क्षेत्र में आगे आओ।।


 

Sunday, August 17, 2025

जीवन साथी नहीं है कोई

 


कुछ खुद को कह रहे घराती, कुछ कहते हैं, बराती हैं।

जीवन साथी नहीं है कोई, सब कुछ पल के साथी हैं।।

मात-पिता संग बचपन जीया।

किषोरावस्था में, मन का कीया।

युवावस्था का, धोखा मधुर था,

गले लगा, जीवन रस पीया।

कुछ ही पल तक साथ चलें ये, बातें इनकी भरमाती हैं।

जीवन साथी नहीं है कोई, सब कुछ पल के साथी हैं।।

काया ही जीवन की साथी।

मच्छर हो या फिर हो हाथी।

देखभाल काया की कर लो,

यह ही आथी, जीवन-साथी।

काया बिना, आत्मा भी भूत है, दुनिया जिससे शरमाती है।

जीवन साथी नहीं है कोई, सब कुछ पल के साथी हैं।।

मात-पिता का साथ है सीमित।

पति-पत्नी संग, नहीं असीमित।

जीवन साथी नहीं मिलेगा,

साथ किसी का नहीं है बीमित।

काया जब तक, जीवन तब तक, शेष सभी वष भाथी हैं।

जीवन साथी नहीं है कोई, सब कुछ पल के साथी हैं।।


सहायताः- आथी-संपत्ति, भाथी-धौंकनी।


Friday, August 8, 2025

समाधान नहीं खोजा तुमने,

 समाधान नहीं तुम बन पाईं!


समस्याओं में अटका यह जग, शिकायत करते लोग-लुगाई।

समाधान नहीं खोजा तुमने, समाधान नहीं तुम बन पाईं!!

रिश्तों में टकराव है हर पल।

अपने पराये की है हल चल।

हमने तो निज उर है खोला,

अजस्र प्रेम, स्रोत की कल-कल।

लेने की बस चाह तुम्हारी, खुद को ही तुम समझ न पाईं।

समाधान नहीं खोजा तुमने, समाधान नहीं तुम बन पाईं!!

बिना किए अच्छा बनना है।

फूल नहीं, तुम्हें फल चुनना है।

लेन-देन से चलती दुनिया,

सुनाना है बस, नहीं सुनना है।

नफरत तुमने उर में पाली, अपनों को ना अपना पाईं।

समाधान नहीं खोजा तुमने, समाधान नहीं तुम बन पाईं!!

श्रवण कुमार कह मजाक उड़ाई।

कर्तव्य पथ तुम नहीं चल पाईं। 

लेन-देन से चलती दुनिया,

लेने की तुमने, राह है पाई।

प्रेम तो होता पवित्र समर्पण, समझाया तुम समझ न पाईं।

समाधान नहीं खोजा तुमने, समाधान नहीं तुम बन पाईं!!

अलग राह है तुमने चुन ली।

स्वार्थ की चूनर तुमने बुन ली।

अपना हित भी समझीं नहीं तुम,

नकल करी और किस्मत धुन ली।

जीवन अपना जीना हमको, सीधी राह पर चल नहीं पाईं।

समाधान नहीं खोजा तुमने, समाधान नहीं तुम बन पाईं!!


Thursday, June 12, 2025

होते नहीं, कभी पस्त हैं

चाह नहीं,

चाहत नहीं।


आह! नहीं,

आहत नहीं।


हाय और हैलो नहीं,

अपना कोई फैलो नहीं।


अपेक्षा नहीं,

उपेक्षा नहीं।


इच्छा नहीं,

परीक्षा नहीं।


वर नहीं,

वरीक्षा नहीं।


रुकते नहीं,

प्रतीक्षा नहीं।


हम अपने में मस्त हैं।

रहते हरदम व्यस्त हैं।

होते नहीं, कभी पस्त हैं।


Thursday, June 5, 2025

उर खुशियों का स्रोत है प्यारे,

गमों को खुशी में बदल पीजिए


आपको खुशी मिले न मिले, सबको, अपने से खुशी दीजिए।

उर खुशियों का स्रोत है प्यारे, गमों को खुशी में बदल पीजिए।।

चाह किसी की रहे न बाकी।

स्वयं ही बनना हमको पाकी।

आत्म प्रेम सबसे है निर्मल,

चाहत नहीं, मिले कोई साकी।

सबके अपने-अपने रस हैं, किसी के रस को, ना विरस कीजिए।

उर खुशियों का स्रोत है प्यारे, गमों को खुशी में बदल पीजिए।।

परिवार किसी की है मजबूरी।

किसी की बनती इससे दूरी।

तितली फूलों पर मड़रा कर,

निज मन इच्छा करती पूरी।

लुटने का आनंद है भोगा, लुटेरों को, अब, बेनकाब कीजिए।

उर खुशियों का स्रोत है प्यारे, गमों को खुशी में बदल पीजिए।।

नहीं खोज साथी की करनी।

नहीं किसी की आन है हरनी।

 सीधे हम, शौक न कोई,

शौकीनों की माँग न भरनी।

स्वत्व तुम्हारा, तुम्हें मुबारक, अपने स्वत्व का मजा लीजिए।

उर खुशियों का स्रोत है प्यारे, गमों को खुशी में बदल पीजिए।।

खुशी जहाँ मिलें रमो वहाँ पर।

हम हैं पिछड़े, रहें कहाँ पर।

हम खुद को ही समझ न पाए,

तुम्हारा कर्ज है सारे जहाँ पर।

अपनत्व जो देते, वह हैं अपने, जीवन, साथ में जी लीजिए।

उर खुशियों का स्रोत है प्यारे, गमों को खुशी में बदल पीजिए।।