जीवन पीछे छूट गया है
मन मीत अब रूठ गया है।
जीवन पीछे छूट गया है।।
नहीं, चाव अब मिलने का है।
नहीं, चाव अब चलने का है।
नहीं, रहे अब पंख पैरों में,
अभिसार स्थल की,
यादें ही शेष हैं।
प्रकृति भी दिखती नहीं,
पल-पल बदलती वेश है।
ना है, वियोग का अहसास,
न ही, विछड़न की टीस है,
सब कुछ स्थिर सा,
ना उन्नीस और ना ही बीस है।
सरलता पर षड्यंत्र जीत गया है।
जीवन पीछे छूट गया है।।
अकेले रहने की,
अब आदत हो गयी है,
सुख-दुख से क्या है?
अब समझ ही नहीं आता,
कोई फर्क नहीं पड़ता,
जिन्दगी ही,
अब आफत हो गयी है।
जो भी हो रहा है,
वही स्वीकार है,
वही सही है
नियंत्रण करने या
बदलने की,
ना तो इच्छा है और
ना ही क्षमता।
तुम्हारे बिना।
सब कुछ रीत गया है।
जीवन पीछे छूट गया है।।
संग साथ के,
सपने तो क्या?
अब तो याद भी नहीं आती।
ना तो लिखने की इच्छा है,
ना ही शेष है कोई चाह,
अब कोयल गीत नहीं गाती।
क्योंकि
अब आती नहीं, तेरी पाती।
बुझ रहा दीया,
और जल रही बाती।
जीवन से निकल गीत गया है।
जीवन पीछे छूट गया है।।
नव रात्रि के,
इस शुभ अवसर पर
मैं सोचता हूँ,
देवी का अंश तो,
हर स्त्री में व्याप्त है।
संपूर्ण प्रकृति ही
देवी स्वरूप है।
तो फिर किसी प्रतिमा की,
क्या आवश्यकता?
जब प्रकृति के कण-कण में,
तुम्हीं व्याप्त हो
तो तुम्हारे पास जाने,
या तुम्हारे भौतिक शरीर को
पास आने की क्या आवश्यकता?
मैं भी प्रकृति का अंश हूँ।
तुम मुझमें भी व्याप्त हो।
व्यष्टि के ऊपर,
समष्टि रूप जीत गया है।
जीवन पीछे छूट गया है।।
मैं पूजा नहीं करता,
किसी प्रतिगा की,
मुझे शरीर की नहीं,
साधना करनी है,
तुम्हारी आत्मा की।
तुम्हारी आत्मा,
मेराी आत्मा में व्याप्त है,
काश!
मैं तुम्हें प्रसन्न रख पाता,
न रहता मैं अप्रसन्न,
ना निराशा के गीत गाता।
समर्पित देवी के लिए,
जो नर
समर्पित नहीं हो जाता,
कैसे प्रसन्न रहेगा वह,
कैसे प्रसन्न होगी?
उससे माता।
हर नारी माता है।
मातृत्व सृष्टि का आधार है।
मातृत्व के बिना,
यह सृष्टि निराधार है।
जीवन जिया नहीं,
तुम्हारे बिना बीत गया है।
जीवन पीछे छूट गया है।।
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