भले ही अकेला रहता हूँ।
प्रेम तुम्हें करता हूँ।
लुटा, पिटा, थका हुआ,
बोझ तले दबा हुआ,
चाह भी मर चुकी,
कामनाएँ जल चुकीं,
पथ में अंधेरा है,
साथ को भी सहता हूँ।
भले ही अकेला रहता हूँ।
प्रेम तुम्हें करता हूँ।
प्रेम नाम ठगा हुआ,
षड्यंत्र में फंसा हुआ,
निरपराध अपराधी हूँ।
कोर्ट में प्रतिवादी हूँ।
जाल में फंसा हुआ,
जुल्म सारे सहता हूँ।
खुद ही बिखरता हूँ।
प्रेम तुम्हें करता हूँ।
जिंदा रहने का संघर्ष है।
मेरी मौत,
तेरा उत्कर्ष है।
फिरौती चुकाकर,
जीवन मुझे जीना है।
बहाना पसीना है।
हुआ उसे भुलाकर,
पीड़ा में मुस्कराकर,
भावों में बहता हूँ।
भूला तुम्हें कहता हूँ।
प्रेम तुम्हें करता हूँ।
कहीं नहीं जाना है।
नहीं पछताना है।
अपने को बचाने के लिए,
पीछा छुड़ाना है।
ठोकरों से सीखा है,
कपट सत्य सरीखा है।
घातक है वार किया,
फिर भी मित्र कहता हूँ।
जीने के भ्रम में,
लुटने को हर पल,
तत्पर रहता हूँ।
खुश सदा दिखता हूँ।
प्रेम तुम्हें करता हूँ।
लूटो, जितना लूट सको,
कानून की मार से,
कूटो, जितना कूट सको,
शिकार की रीत यही,
छिपकर वार करो,
खुद के मजे के लिए,
और यार चार करो।
कुछ भी तुमसे पाने की,
चाह नहीं रखता हूँ।
देता सदा दिखता हूँ।
प्रेम तुम्हें करता हूँ।
नफरत नहीं किसी से,
गफलत नहीं है कोई,
वार तुमने किया है,
उसको ही जिया है।
मेरे ही पैसे से,
विष तुमने दिया जो,
अमृत समझ पिया है।
उसे भी पचाया है,
तुमने जो नचाया है।
तन्हाई में भी,
साथ सबके रहता हूँ।
फिर भी हँसता दिखता हूँ।
प्रेम तुम्हें करता हूँ।
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