Tuesday, September 30, 2025

देवीय गुणों को विकसित करके

 अखिल विश्व की पीड़ा हर लो

                                            


नारी तुम, देवी शक्ति हो, खुद से खुद को जाग्रत कर लो।

देवीय गुणों को विकसित करके, अखिल विश्व की पीड़ा हर लो।

युगों-युगों से महिमा तुम्हारी।

कम नहीं होगी गरिमा तुम्हारी।

अणिमा शक्ति है छायी जग में,

भक्त पूजते प्रतिमा तुम्हारी।

नव रात्रि में जन-जन पूजे, जग को गढ़ती, खुद को गढ़ लो।

देवीय गुणों को विकसित करके, अखिल विश्व की पीड़ा हर लो।

भटक रहीं क्यों अपने पथ से?

शासित क्यों होती हो नथ से?

मातृ रूप में सदैव हो पूजित,

उतरो नहीं जीवन के रथ से।

अनाचार, व्यभिचार बढ़ रहा, आततायी के मन को पढ़ लो।

देवीय गुणों को विकसित करके, अखिल विश्व की पीड़ा हर लो।

परिवार को, बाँधों फिर से।

अन्याय को काटो सिर से।

जीवन मूल्य पल-पल परिवर्तित,

सावधान कुछ कर लो थिर से।

वीर प्रसू तुम, भारत माँ हो, संतति चढ़ी, अब तुम भी चढ़ लो।

देवीय गुणों को विकसित करके, अखिल विश्व की पीड़ा हर लो।


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