Wednesday, April 16, 2025

प्रेम मिलन जब हो जाता है,

कोई हार, कोई जीत नहीं है


गले लगाकर, है ठुकराया, यह तो प्रेम की रीत नहीं है।

प्रेम मिलन जब हो जाता है, कोई हार, कोई जीत नहीं है।।

सबकी चाहत प्रेम है भाई।

लोग भले हों, भले लुगाई।

कोई बताओ प्रेम ये कैसा?

काट-पीट कर काया जलाई।

काम-वासना प्रेम नहीं है, हर कविता भी गीत नहीं है।

प्रेम मिलन जब हो जाता है, कोई हार, कोई जीत नहीं है।।

हमने प्रेम में देना सीखा।

प्रेम कभी ना होता फीका।

प्रेम मधुर है भाव सृष्टि का,

कानूनों से करो न तीखा।

प्रेम पात्र के हित में कर्म है, प्रेम मात्र प्रतीत नहीं है।

प्रेम मिलन जब हो जाता है, कोई हार, कोई जीत नहीं है।।

प्रेम नहीं काया का बिछोना।

जिस पर होता हो बस सोना।

प्रेम त्याग है, प्रेम ही तप है,

अजस्र सरोवर, नहीं खिलोना।

प्रेम में करता जो है सौदा, वह बन पाता मीत नहीं है।

प्रेम मिलन जब हो जाता है, कोई हार, कोई जीत नहीं है।।


Monday, April 14, 2025

नहीं, प्रेम तुम खोजो बाहर,

 खुद ही, खुद से प्रेम करो।


 खुद ही, खुद को समय निकालो, खुद ही खुद के कष्ट हरो।

नहीं, प्रेम तुम खोजो बाहर, खुद ही, खुद से प्रेम करो।।

सबके अपने-अपने स्वारथ।

कोई नहीं करता परमारथ।

जिनसे भी उम्मीद तू करता,

वह ही करते, जीवन गारत।

पल-पल को आनंद से जीओ, प्यारे! पल-पल नहीं मरो।

नहीं, प्रेम तुम खोजो बाहर, खुद ही, खुद से प्रेम करो।।

नहीं कोई अपना, नहीं पराया।

सबने अपना राग सुनाया।

विश्वास बिना जीवन नहीं प्यारे!

विश्वासघात ने जाल बिछाया।

आत्मविश्वास जगा राष्ट्रप्रेमी, खुद पर तुम विश्वास करो।

नहीं, प्रेम तुम खोजो बाहर, खुद ही, खुद से प्रेम करो।।

अन्तर्मन में प्रेम जगाओ।

चाह नहीं, बस प्रेम लुटाओ।

नहीं किसी से चाहत कोई,

नहीं पटो, और नहीं पटाओ।

प्रेम की भूख सभी को यहाँ पर, नहीं किसी का प्रेम हरो।

नहीं, प्रेम तुम खोजो बाहर, खुद ही, खुद से प्रेम करो।।


Saturday, April 12, 2025

नहीं किसी को कभी डराओ

 नहीं किसी से स्वयं डरो


नहीं किसी से  प्रेम की चाहत, नहीं किसी से प्रेम करो।

नहीं किसी को कभी डराओ, नहीं किसी से स्वयं डरो।।

निज स्वतंत्रता सबको प्यारी।

सीमित रखनी, सबसे यारी।

सबके अपने खेल निराले,

सबकी अपनी-अपनी पारी।

जीवन से खिलवाड़ करो ना, नहीं किसी से मेल करो।

नहीं किसी को कभी डराओ, नहीं किसी से स्वयं डरो।।

जीवन जीना है खुलकर के।

रोना भी है,यहाँ हँस करके।

जिस पर भी विश्वास करोगे,

चला जाएगा, वह ठग करके।

सामाजिक कर्तव्य निभाओ, नहीं किसी की जेल करो।

नहीं किसी को कभी डराओ, नहीं किसी से स्वयं डरो।।

प्रेम जाल में कभी न फसना।

नहीं पड़ेगा तुम्हें तरसना।

विश्वसनीय बन, विश्वास न करना,

विश्वासघात से भी है बचना।

नहीं किसी के खेल में फसना, नहीं किसी से खिलवाड़ करो।

नहीं किसी को कभी डराओ, नहीं किसी से स्वयं डरो।।


Thursday, April 10, 2025

महावीर जयंती पर विशेष

पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान


सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान से, सम्यक चरित्र जो पाता है।

पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।

अनंत चतुष्ट्य का ज्ञान हो जिसको।

अनंत दर्शन और अनन्त शक्ति को।

अनंत वीर्य से, अनंत आनंदित,

अनंत लोक मिलता है ‘जिन’ को।

सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य जुड़ जाता है।

पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।

अनीश्वरवादी जैन धर्म है।

अनेकांत और स्याद मर्म है।

बद्ध जीव जब मुक्त है होता,

‘निग्रन्थ’ वह मुक्त कर्म है।

दिगंबर और श्वेतांबर मिल, जैन समुदाय कहलाता है।

पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।

अहिंसा धर्म का मूल मंत्र है।

सम्यक साधना मुक्ति यंत्र है।

बद्ध जीव की मुक्ति हेतु ही,

सम्यक चरित्र का जैन तंत्र है।

स्यादवाद सापेक्ष ज्ञान कह, सत् और असत् बतलाता है।

पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।


Sunday, April 6, 2025

तन-मन-धन सब मिलकर ही

प्रेम में नहीं भिन्न कुछ होता, एकाकार हो जाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
तन का मिलन वासना प्यारी।
अलग-अलग रहती है  क्यारी।
तेरा-मेरा धन भिन्न जब तक,
मैं हूँ दूर और तुम हो न्यारी।
मन से मीत मिलन जब होता, एक-दूजे को भाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
समझ रहा था, मैं अभिन्न हूँ।
तुमने बताया, मैं तो भिन्न हूँ।
तुमको चाह है धन की केवल,
जाना जब से, मन से खिन्न हूँ।
अर्ध-नारीश्वर शिव हो जाते, मन के मीत मिल जाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
गलतफहमी में मैं था जीता।
तुमने लगाया उसको पलीता।
मजबूर नहीं हो, स्वयं कमातीं,
तुम संपूर्ण हो, मैं हूँ रीता।
मन का मिलन जब है होता, साथ में सोते-खाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।

Saturday, April 5, 2025

फसल और ही ले जाते हैं

पाता नहीं, जो उसको बोता


प्रेम नहीं सबको मिल पाता, सबके ही परिवार न होता।

फसल और ही ले जाते हैं, पाता नहीं, जो उसको बोता।। 

जन्म लिया है, जीना होगा।

संबन्धों में, विष, पीना होगा।

भले ही कोई घर नहीं प्यारे,

बजाना प्रेम से बीना होगा।

दिल खोलकार प्रेम लुटाना, भले ही मिले न प्रेम का सोता।

फसल और ही ले जाते हैं, पाता नहीं, जो उसको बोता।।

अपना नहीं है यहाँ पर कोई।

सबको चाहिए तेरी लोई।

जीवन का सब सार लुट गया,

बची पास है, केवल छोई।

जीवन पथ पर अकेला चलना, साथ न चलेगा सुत या पोता।

फसल और ही ले जाते हैं, पाता नहीं, जो उसको बोता।।

तूने सबको प्रेम लुटाया।

बाँट दिया सब, नहीं जुटाया।

उनके झूठ भी सच हैं प्यारे,

तेरे सच को भी झुठलाया।

नदी नहीं, है सागर गहरा, मौत का जोखिम लगा ले गोता।

फसल और ही ले जाते हैं, पाता नहीं, जो उसको बोता।।

जीवन से क्या पाया तूने?

खुद को ही है लुटाया तूने।

 जिस पर भी विश्वास किया,

विश्वासघात ही पाया तूने।

फसल की चाह त्याग दे प्यारे, सूख गया, जो तूने जोता।

फसल और ही ले जाते हैं, पाता नहीं, जो उसको बोता।।


Tuesday, March 25, 2025

स्वारथ हित है प्रेम उमड़ता

स्वारथ का है खेल जगत का, स्वारथ का ही मेल है।

स्वारथ हित है प्रेम उमड़ता, घर बन जाता  जेल है।।

स्वारथ के हैं बहन और भाई।

स्वारथ के हैं ताऊ और ताई।

स्वारथ हित जो एक हुए थे,

स्वारथ खोदे फिर से खाई।

स्वारथ हित है सेवा होती, हड्डियों से निकले तेल है।

स्वारथ हित है प्रेम उमड़ता, घर बन जाता  जेल है।।

स्वारथ को अब सब स्वीकारो।

स्वारथ जीओ, कभी न हारो।

स्वारथ है, सबकी संतुष्टि,

स्वारथ में भी, हक ना मारो।

स्वारथ ही है जीवन यात्रा, स्वारथ मौत की सेल है।

स्वारथ हित है प्रेम उमड़ता, घर बन जाता  जेल है।।

स्वारथ हित है पूजा होती।

स्वारथ हित खुलती है धोती।

स्वारथ हित है कोख बिक रही,

स्वारथ हित बिकती है पोती।

स्वारथ में संबन्ध बिक रहे, स्वारथ की रेलम-पेल है।

स्वारथ हित है प्रेम उमड़ता, घर बन जाता  जेल है।।


Saturday, March 22, 2025

स्वारथ के हैं संगी-साथी

स्वारथ की ही दुनिया है


स्वारथ हित है मुन्ना पाला, स्वारथ की ही मुनिया है।

स्वारथ के हैं संगी-साथी, स्वारथ की ही दुनिया है।।

स्वारथ ही है मूल जगत का।

स्वारथ ही है पूल जगत का।

स्वारथ हित संबन्ध हैं बनते,

स्वारथ ही है भजन भगत का।

स्वारथ हित ही विद्वान यहाँ, स्वारथ हित ही गुनिया है।

स्वारथ के हैं संगी-साथी, स्वारथ की ही दुनिया है।।

स्वारथ हित संबन्ध की चाहत।

स्वारथ हित ही पद की चाहत।

स्वारथ हित ही मर-मिटे धन पर,

स्वारथ ही है यश की चाहत।

स्वारथ का ही नाम परमारथ, स्वारथ की ही धुनिया है।

स्वारथ के हैं संगी-साथी, स्वारथ की ही दुनिया है।।

स्वारथ से ही स्वारथ तुमको।

स्वारथ हित भाया ना हमको।

स्वारथ हित संबन्ध था जोड़ा,

स्वारथ हित फोड़ा है बम को।

स्वारथ का सम्मान यहाँ पर, स्वारथ हित ही चुनिया है।

स्वारथ के हैं संगी-साथी, स्वारथ की ही दुनिया है।।


Sunday, March 9, 2025

अहसास प्रेम का कराया तुमने

 विश्वास अभी भी तुम पर है


साथ किसी के रहो भले ही, अहसान तुम्हारा हम पर है।

अहसास प्रेम का कराया तुमने, विश्वास अभी भी तुम पर है।।

हम मनमौजी भटक रहे थे।

चलते-चलते अटक रहे थे।

साथ कोई भी नहीं था जग में,

निराशाओं में लटक रहे थे।

आज भी अकेले अपने पथ पर, विश्वास नहीं अब खुद पर है।

अहसास प्रेम का कराया तुमने, विश्वास अभी भी तुम पर है।।

हमें तुम्हारा हाथ चाहिए।

तुम्हें दुनिया का साथ चाहिए।

हमारा साथ न भाता तुमको,

ऊँचा तुम्हें बस माथ चाहिए।

हमें आश केवल है तुमसे, तुम्हें नाज़ गैरो पर हैं।

अहसास प्रेम का कराया तुमने, विश्वास अभी भी तुम पर है।।

हमें छोड़कर सब तुम्हें प्यारे,

समझा कर, हम तुमसे हारे।

एक चाह तुमरी बस देखी,

करें प्रशंसा तुम्हारी सारे।

बिना पंख तुम उड़ान हो भरतीं, हमारा ध्यान पैरों पर है।

अहसास प्रेम का कराया तुमने, विश्वास अभी भी तुम पर है।।

हमारा विरोध प्रिय है तुमको।

साथ न भाता हमारा तुमको।

संघर्षों के हम है राही,

सुविधाओं की चाह है तुमको।

हम गाँवों के रहे पुजारी, तुम्हारा ध्यान शहरों पर है।

अहसास प्रेम का कराया तुमने, विश्वास अभी भी तुम पर है।।

नहीं, सुखी हम तुम्हें रख पाए।

नहीं, साथ मिल हम चल पाए।

पथ चलते संबन्ध बनाकर,

तुमने समझा धन, यश पाए।

हमने विकास चाहा था तुमरा, तुम्हारा लोभ दुनिया पर है।

अहसास प्रेम का कराया तुमने, विश्वास अभी भी तुम पर है।।


Friday, March 7, 2025

प्रेम नहीं बाजार में बिकता

 प्रेम का कोई मोल नहीं है


प्रेम में नहीं प्रदर्शन होता, प्रेम का कोई तोल नहीं है।

प्रेम नहीं बाजार में बिकता, प्रेम का कोई मोल नहीं है।।

प्रेम में नहीं कोई सौदेबाजी।

प्रेम में नहीं होता कोई काजी।

प्रेम कभी न पुराना होता,

प्रेम की खुशबू रहती ताजी।

प्रेम पल्लवित अन्तर्मन में, यह ऊपर का खोल नहीं है।

प्रेम नहीं बाजार में बिकता, प्रेम का कोई मोल नहीं है।।

प्रेम में नहीं होता कोई धोखा।

प्रेम नहीं है, लूट का मौका।

प्रेम क्रिकेट का खेल नहीं है,

प्रेम में लगता नहीं है चौका।

प्रेम है जीवन, प्रेम समर्पण, यह काया का होल नहीं है।

प्रेम नहीं बाजार में बिकता, प्रेम का कोई मोल नहीं है।।

प्रेम के पथ से सबने रोका।

प्रेम को हर पल गया है टोका।

प्रेम है जीना प्रेमी हित में,

प्रेम नहीं, जब चाहा ठोका।

प्रेम है झरना प्रेमी उर का, चुकाना कोई टोल नहीं है।

प्रेम नहीं बाजार में बिकता, प्रेम का कोई मोल नहीं है।।

प्रेम है, कोई सौदा नहीं तुमसे,

प्रेम तुम्हें, दिखावे के जग से।

प्रेम खोजते मोबाइल पर तुम,

प्रेम प्रतीक्षा हमको कब से?

प्रेम ही तप है, प्रेम जगत है, प्रेम सार है, खोल नहीं है।

प्रेम नहीं बाजार में बिकता, प्रेम का कोई मोल नहीं है।।


Tuesday, March 4, 2025

जिंदा रहना जरूरी है

 आजादी

संभव नहीं,

जब तक

किसी का हाथ चाहिए,

किसी का साथ चाहिए,

कानून की सुरक्षा चाहिए

तो कानून भी स्वीकारना होगा,

परिवार चाहिए

बंधनों को मानना होगा

रोटी, कपड़ा और मकान

भी बंधन है

बंधन है यह जीवन भी

तभी तो

युगों युगों से

रही है चाह मुक्ति की,

चार पुरुषार्थ माने गए

धर्म, अर्थ काम और मोक्ष

पर मिले किसी को

जिज्ञासा अभी है

बंधन भी है

नहीं चाहिए मुझे

आजादी

किंतु

जिंदा रहना जरूरी है

भले ही जीना

मजबूरी है।

Sunday, March 2, 2025

सुविधाओं के भोग में

 कैसे बने फौलाद?


आई लव यू वाक्य ने, यूथ किया बर्बाद।

सुविधाओं के भोग में, कैसे बने फौलाद?

पढ़ने की क्षमता घटी।

मोबाइल लड़की पटी।

कक्षा में भी गेम हैं,

बन रहे देखो हठी।

यू-ट्यूब बस देखकर, बनना चाहें कणाद।

सुविधाओं के भोग में, कैसे बने फौलाद?

पढ़ना-लिखना छोड़कर।

अपनों से मुहँ मोड़कर।

गर्लफैण्ड से चेट कर,

चाँद लायेंगे तोड़कर।

चाउमीन भक्षण करें, खाते नहीं सलाद।

सुविधाओं के भोग में, कैसे बने फौलाद?

प्रेम बहुत हल्का किया।

एक से ना भरता जिया।

बलात्कार के केस कर,

चाह रहीं, देखो पिया।

पति से बस धन चाहिए, प्रेमी से औलाद।

सुविधाओं के भोग में, कैसे बने फौलाद?

लिव इन में, रहना इन्हें।

विधर्मी ही भाते जिन्हें।

बहत्तर टुकड़ों में काटकर,

फेंका जाता है उन्हें।

सेल्फी ही बस सेल्फ है, कैसे हों आबाद?

सुविधाओं के भोग में, कैसे बने फौलाद?


Friday, February 28, 2025

दिखावे के व्यवहार ने

 हिलाईं समाज की चूल

स्वारथ की इस दौड़ में, अपने को रहे भूल।

दिखावे के व्यवहार ने, हिलाईं समाज की चूल।।

जिह्वा हित भोजन जहाँ।

पौष्टिक तत्व मिलते कहाँ?

शरीर स्वस्थ कैसे रहे?

समय नहीं खुद को जहाँ।

निज हित में जीना हमें, परमारथ का मूल।

दिखावे के व्यवहार ने, हिलाईं समाज की चूल।।

क्या रखा इस होड़ में।

प्रदर्शन की दौड़ में।

तनाव का सृजन करें,

पड़ोसियों की तोड़ में।

खुद को, खुद के कर्म हैं, खुद रहना है कूल।

दिखावे के व्यवहार ने, हिलाईं समाज की चूल।।

दूजों की करते नकल।

घास चरने भेजी अकल।

मोटापा, शुगर और तनाव,

बिगाड़ी है, खुद की शकल।

शूलों का पोषण करें, चाह रहे हैं फूल।

दिखावे के व्यवहार ने, हिलाईं समाज की चूल।।

खुद ही खुद को समय नहीं है।

दूजे करें जो, वही सही है।

औरों की ही सोच है हावी,

अपनी बात न कभी कही है।

जीवन भर औरों को देखा, निज अस्तित्व गए भूल।

दिखावे के व्यवहार ने, हिलाईं समाज की चूल।।


Thursday, February 27, 2025

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है

 साथ मुझे नहीं रहना है



मुझको अपने साथ ही रहना, मुझको तुमसे कहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

सुविधाएँ और ऐश चाहिए।

कर्तव्य बिना अधिकार चाहिए।

संबन्धों का व्यापार जहाँ हो,

मुझको ना संसार चाहिए।

झूठ, कपट और प्रदर्शन, सम्बन्ध, नहीं मुझे सहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

औरों की मर्जी से जीना।

जहर हुए सम्बन्ध को पीना।

ऐसा कोई कानून नहीं है,

स्वाभिमान का झुका दे सीना।

शिक्षित होकर जो परजीवी, जीवन नहीं है, दहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

नहीं चाहिए यश, धन मुझको।

संसार मुबारक तुम्हारा तुमको।

दरिद्रता को गले लगाकर,

बचाना है मुझे तुमसे खुद को।

समय चक्र चलता है नित, किसको? कब? कहाँ? ढहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

सीधा पथ कभी तनाव न देता।

व्यक्ति फिर भी नहीं है चेता।

षड्यंत्रों में फँसता खुद ही,

खुद ही अपना गला है रेता।

दुनिया के कहने पर चलता, मानव नहीं, वह शहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

संघर्ष में ही बीता बचपन।

संघर्ष में हुए हैं पचपन।

किसी से कुछ भी नहीं छुपाया,

अपना जीवन रहा है दरपन।

वस्त्रों का भी शौक न हमको, किसे चाहिए गहना है?

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

तुम्हें मुबारक लूटमार है।

तुम्हें मुबारक लोकाचार है।

संबन्धों का व्यापार करो तुम,

मुझको तो स्वीकार हार है।

जीवन की भी चाह नहीं है, नहीं आवरण पहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।


Wednesday, February 26, 2025

नहीं करना है मुझे परमारथ

 मुझको निपट स्वारथी बनना


 खुद को सुखी बनाने के हित, सबका सुख है सृजित करना।

नहीं करना है मुझे परमारथ, मुझको निपट स्वारथी बनना।।

असंतुष्ट जब आस-पास हों।

फसल में, जब घास-पात हों।

कैसे सुखी में रह पाऊँगा?

अपने साथी जब उदास हों।

खुद ही कमाकर खाना है मुझे, नहीं किसी का धन है हरना।

नहीं करना है मुझे परमारथ, मुझको निपट स्वारथी बनना।।

पूजा नहीं किसी की करता।

नहीं किसी का चैन मैं हरता।

प्रकृति का कण-कण शंकर है,

स्वारथी हूँ, सबमें मैं रमता।

स्वच्छ जल और वायु चाहिए, स्वार्थी हूँ, संरक्षण करना।

नहीं करना है मुझे परमारथ, मुझको निपट स्वारथी बनना।।

भ्रष्ट आचरण ना सुख देता।

लोभ-लालच है, नींद हर लेता।

सदाचार से सुख का सृजन,

 कलयुग हो या फिर हो त्रेता।

चतुर और चालाक नहीं मैं, सीधे पथ चल कंटक चुनना।

नहीं करना है मुझे परमारथ, मुझको निपट स्वारथी बनना।।

अन्याय किसी का नहीं है सहना।

हर पल, मुझे, कर्मरत रहना।

पल-पल हो आनन्द का सृजन,

नहीं चाहिए, कोई गहना।

असंतुष्टों से घिर कर प्यारे! नहीं मुझे असंतुष्ट है रहना।

नहीं करना है मुझे परमारथ, मुझको निपट स्वारथी बनना।।


Sunday, February 23, 2025

परिवर्तन ही परिवर्तन है

परिवर्तन जीवन का मूल


स्थिरता तो शब्द मात्र है, इसको ना तुम जाना भूल।

परिवर्तन ही परिवर्तन है, परिवर्तन जीवन का मूल।।

षड् ऋतु आती जाती हैं।

वसंत में कोयल गाती हैं।

ग्रीष्म, वर्षा, शरद चक्र है,

हेमंत और शिशिर, आाती हैं।

कभी नायिका गर्म है होती, कभी नर को करती है कूल।

परिवर्तन ही परिवर्तन है, परिवर्तन जीवन का मूल।।

समय चक्र चलता ही रहता।

बर्फ पिघलती, जल है बहता।

कल तक प्रेमी प्रेम में डूबा,

बिछड़ वही है वियोग को सहता।

प्रयासों से पुष्प पल्लवित, निष्क्रियता बनती है शूल।

परिवर्तन ही परिवर्तन है, परिवर्तन जीवन का मूल।।

अपने आपको भूल गए थे।

उदासीन हो कूल भए थे।

सृजन तो प्रयास से होता,

निष्क्रिय हो हम गूल भए थे।

हमरे पथ में धूल बिछी है, तुमरे पथ हैं प्रेम के फूल।

परिवर्तन ही परिवर्तन है, परिवर्तन जीवन का मूल।।


Sunday, February 2, 2025

जिसे वह सोशल मीडिया कहती है

 घर लौटा वसंत


लगभग

दस माह की

अविरल यात्रा के बाद

थकान, मलिनता और क्लांति के 

भावों को चेहरे पर समेटे हुए

घर लौटा वसंत।

दरवाजे पर

कई बार घण्टी बजाने के वाबजूद

उषा ने नहीं खोला फ्लेट का दरवाजा

वसंत ने अपनी वाली चाबी से

दरवाजा खोलकर 

अंदर जाकर देखा

उसका नहीं था

वहाँ किसी को इंतजार

उसकी तरफ

किसी ने देखा तक नहीं,

उषा तमस के साथ

मोबाइल पर 

चीटिंग में बिजी है

जिसे वह सोशल मीडिया कहती है।


Saturday, February 1, 2025

एलिमनी के बिना तो, तलाक भी नहीं होता

 वसंत

कई दिनों के वियोग

यात्रा की थकान

हो गया था सर्द

बेरोजगारी के दर्द

को समेटे हुए

घर वापस

उषा के पास पहुँचा।

उषा ने देखते ही

मुँह मोड़ लिया,

मुझे नहीं देखना

तुम्हारा पिटा हुआ चेहरा,

मैंने पहले ही कह दिया था

मेरे पास वापस

तभी आना

जब कमाकर कुछ बन जाओ

एसी, लेपटाॅप और आई फोन

खरीदने को धन जुटा पाओ।

बेरोजगारी का रोना रोने वाला 

प्यार क्या जाने?

प्यार के लिए तो पैसा चाहिए

यदि नहीं थी ताकत

कमाकर घुमाने की

तो क्या थी जरूरत

घोड़ी चढ़ आने की।

एलिमनी के बिना तो

तलाक भी नहीं होता।

अगर तुझे

अपनी जान प्यारी है,

तू बाहर निकल

उड़ाता रह तोता।


Friday, January 31, 2025

कैलेंडर में कैद बसंत


सुबह-सुबह

कैलेंडर पर नजर गई

दिख गया वसंत!

खिड़की खोलने की कोशिश की

नहीं खुली, जाम के कारण।

जाम की समस्या आम है। 

जीवन पर धुंध

दिखता नहीं चाम है।

धुंध हर दिल में छाया है

मेक अप से, पोती जा रहीं काया हैं।

दरवाजा जैसे-तैसे खोला,

बाहर वसंत तो क्या?

शीत भी दिखा नहीं,

वायुगुणवत्ता सूचकांक को,

जीवन पचा नहीं।

मोबाइल पर संदेश आया,

हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है।

जैसे जहरीली शराब है।

वसंत की मजबूरी है

बाहर नहीं जा सकता,

कैलेंडर में कैद है।

जब प्रारंभ ही नहीं,

तो कैसा अन्त।

प्रेमी युगल कैद है मोबाइल में

कैलेंडर में कैद है वसंत।


Friday, January 10, 2025

कदम-कदम हो, मुझे जलातीं,

 इंसान तो समझो, चूल्हा नहीं है


भले ही कोई साथ नहीं है, भले ही, हाथ में हाथ नहीं है।

दूरी भले ही बनाई तूने, नहीं कहा कभी, साथ नहीं है।

एकान्त में प्रेम का गीत था गाया, खींच मुझे था गले लगाया।

जीना ही अब भूल गया हूँ जबसे तुमने है ठुकराया।

अकेलेपन की चाह नहीं है. खुद की खुद को थाह नहीं है।

पल-पल मिलने की तड़पन है, कहता फिर भी आह नहीं है।

खुशियाँ देना चाहा तुमको. दुखी हृदय पाया था तुमको।

खुशियों के पथ जाओ प्यारी, तुम्हें नहीं, ठुकराया खुद को।

तुम्हारे बिना मैं क्यों जीता हूँ? पढ़ नहीं पाता, अब गीता हूँ।

अमी तुम्हारे हाथ में था बस, क्षण-क्षण अब तो विष पीता हूँ।

आज भले ही दूर हूँ तुमसे, दिल में हो तुम, निकाला नहीं है।

मुझे छोड़, तुम बनी हो सबकी, झुकाया कभी भी माथ नहीं है।

जीना ही अब भूल गया हूँं. देखो कितना कूल भया हूँ।

तुमने सब कुछ सौंप दिया था, लूटा गया हूँ, लुट ही गया हूँ।

मजबूरी अब नहीं तुम्हारी, साथ चलें अब आओ प्यारी।

मनमर्जी तो नहीं चलेगी, मिलकर सजेगी, जीवन क्यारी।

तुम्हारे बिन मुझे जीना नहीं है. अमी भले हो पीना नहीं है।

जग में नहीं कोई आकर्षण, साथ तुम्हारा पसीना नहीं है।

साथ बहुत हैं संगी-साथी, हथिनी को मिल जाते हाथी।

जिनको अपना समझ रही हो, ठुकराएंगे वे सब साथी।

हम पर नहीं विश्वास, न सही, अपने आपको मत ठुकराओ।

ठोकर हमको मारो भले ही, खुद को. खुद के, गले लगाओ।

जीवन पर विश्वास अभी भी, आओगी, इसे भूला नहीं है।

कदम-कदम हो, मुझे जलातीं, इंसान तो समझो, चूल्हा नहीं है।


Thursday, January 9, 2025

जीवन पथ पर साथ था चाहा

तुमने पथ ही मोड़ दिया


जिस हाथ  से हाथ था पकड़ा, तुमने हाथ वह तोड़ दिया।

जीवन पथ पर साथ था चाहा, तुमने पथ ही मोड़ दिया।।

विश्वास से संबन्ध विकसते।

विश्वास से हैं सुमन विहँसते।

विश्वास पर चोट की तुमने,

कानून से देखा तुम्हें बहकते।

लालच, लोभ, कामुकता से भर, झूठा रिश्ता तोड़ दिया।

जीवन पथ पर साथ था चाहा, तुमने पथ ही मोड़ दिया।।

कानूनों को बना खिलोना।

तुमने चुना है प्रेमी सलोना।

रिश्तों को यूँ तार-तार कर,

कहाँ से सीखा झूठ बिलोना।

हमने सब कुछ तुमको सौंपा, तुमने सब कुछ फोड़ दिया।

जीवन पथ पर साथ था चाहा, तुमने पथ ही मोड़ दिया।।

रिश्तों से है तुमने खेला।

जिसको चाहा, उसको पेला।

स्वार्थ में अन्धी होकर के,

चोट की इतनी, हमने झेला।

हमने तुमको चाबी थी सौंपी, तुमने ताला तोड़ दिया।

जीवन पथ पर साथ था चाहा, तुमने पथ ही मोड़ दिया।।

बातचीत कर सब कुछ तय था।

किया वही, जिसको हमें भय था,

झूठे वायदे कर हमें फंसाया,

प्रौढ़ावस्था का तुम्हारा वय था।

निष्ठुरता से मार के ठोकर, धन लूटा हमें छोड़ दिया।

जीवन पथ पर साथ था चाहा, तुमने पथ ही मोड़ दिया।।


Monday, January 6, 2025

रुपए बिन ना संगी-साथी

रुपए बिन ना काज है 


रुपए के सर ताज सजा है, रुपए का ही राज है।

रुपए बिन ना संगी-साथी, रुपए बिन ना काज है।।

रुपए से परिवार हैं बनते।

रुपए से सेहरे हैं सजते।

रुपए से ही बंधु और भगिनी,

रुपए से ईमान हैं ठगते।

रुपए से ही प्रेम विहँसता, रुपए पर ही नाज है।

रुपए बिन ना संगी-साथी, रुपए बिन ना काज है।।

रुपए हित ही लूट मची है।

रुपए हित ही झूठ बची है।

रुपए हित मर्डर होते हैं,

रुपए हित षड्यंत्र रची है।

रुपए हित हैं कपट और धोखे, संबन्धी बनते बाज है।

रुपए बिन ना संगी-साथी, रुपए बिन ना काज है।।

रुपए से शादी होती हैं।

रुपए से बिकती पोती है।

रुपए से हैं गर्भ पालतीं,

रुपए से लज्जा खोती हैं।

रुपए हित ईमान है बिकता, ठगने में ना लाज है।

रुपए बिन ना संगी-साथी, रुपए बिन ना काज है।।




Saturday, January 4, 2025

धन ही गणित में, धन ही जगत में,

 धन हर दिल में छाया है


धन बिन अपना कोई न यहाँ पर, संबन्ध भी धन की माया है।

धन ही गणित में, धन ही जगत में, धन हर दिल में छाया है।।

धन हित ही सन्तान को पालें।

धन हित चलते हैं यहाँ चालें।

धन हित ही महाभारत होते,

धन हित भाई, भाई को टालें।

धन है स्वारथ, धन परमारथ, धन-मन, धन ही गाया है।

धन ही गणित में, धन ही जगत में, धन हर दिल में छाया है।।

धन हित, प्रेमी, प्रेम लुटाएं।

धन हित बिकतीं हैं ललनाएं।

धन हित पति है, धन हित पत्नी,

धन हित मिटते और मिटाएं।

धन से ही सब मिलता यहाँ पर, धन ने सब ठुकराया है।

धन ही गणित में, धन ही जगत में, धन हर दिल में छाया है।।

धन का उल्टा ऋण होता है।

धन बिन किसने हल जोता है।

धन बिन कोई बीज न मिलता,

धन बिन सब, जीरो होता है।

धन हित, भाई, भाई को मारे, गले लगाया, पराया है।

धन ही गणित में, धन ही जगत में, धन हर दिल में छाया है।।


Sunday, December 29, 2024

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है

या मैं उनको ठुकराता हूँ

 अकेलापन या एकान्त साधना, समझ नहीं में पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

अपनी शर्तो पर जीना है।

एकान्त का विष पीना है।

शांति में ही तो साधना होती,

अकेले में कैसा जीना है?

सबसे ही हूँ, प्यार चाहता, नहीं किसी को दे पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

सबको देना ही बस चाहा।

नहीं किसी से पाना चाहा।

जिसने चाहा लूटा मुझको,

सबका हित है उर ने चाहा।

जिसने भी है हाथ बढ़ाया, पकड़ नहीं में पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

समझ नहीं मैं पाया खुद को।

दूर किया है, खुद से खुद को।

जिसने सब कुछ सौंप दिया था,

सौंप न पाया, उसको खुद को।

नहीं जिसे स्वीकार किया था, गीत उसी के गाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

तड़पन मिलने की अब उससे,

उसके बिन बिछड़ा हूँ खुद से।

खुद ही उससे दूर हुआ था,

मिलने की अब तड़पन उससे।

साधना नहीं अकेलापन है, नहीं मीत से मिल पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।


Thursday, December 19, 2024

पल भर भी मैं अलग न रहता,


सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।



 साथ भले ही आज नहीं हो, साथ की यादों में जीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।
साथ भले ही तुम्हें न भाता।
साथ तुम्हारे मैं मदमाता।
प्रेम तुम्हारा भरा है उर में,
गीत तुम्हारे अब भी गाता।
नेह तुम्हारा भरा हुआ है, युग बीते पर, नहीं रीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।
जहाँ सुखी हो, रहो वहीं पर।
याद न करना, मुझे कहीं पर।
तड़पन का आनन्द मुझे है,
पर भर भूला नहीं कहीं पर।
साथ किसी के खुशियाँ पाओ, साथ तुम्हारे ही जीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।
ख्वाबों में तुम साथ हो हर पल।
कामों में तुम साथ हो हर पल।
तुम्हारे हाथ ही खाना-पीना,
तुम्हारे साथ ही सोता प्रति पल।
जीवन तो गया साथ तुम्हारे, ना मालूम मैं क्यों जीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।

Tuesday, December 17, 2024

अपने आगे खड़ा हो गया

 बेटा! अब है बड़ा हो गया


मना करने पर पास था आता।

साथ में ही था वो सो पाता।

हाथ से मेरे, दूध था पीता,

वरना भूखा था सो जाता।

                अकेले का अभ्यास हो गया।

                बेटा! अब है बड़ा हो गया।

डाॅटा, डपटा, मारा-पीटा।

दूध पिलाया, खिलाया पपीता।

अपनी, उसकी, इच्छा मारी,

चाहा था, बने ज्ञान की गीता।

                 इंटरनेट से विद्वान हो गया।

                 बेटा! अब है बड़ा हो गया।

मोबाइल ही सार हो गया।

लेपटाॅप से प्यार हो गया।

साथ न उसको भाता है अब,

लगता वह वीतराग हो गया।

                 अपने पैरों खड़ा हो गया।

                 बेटा! अब है बड़ा हो गया।

संयम का अभ्यास कर रहा।

बचपन बीता, चाव मर रहा।

स्वस्थ रहे बस, यही चाह है,

जग को दे जो, अभी ले रहा।

                 अपने आगे खड़ा हो गया।

                 बेटा! अब है बड़ा हो गया।


Saturday, December 14, 2024

सत्य की डगर


पिस्ता चौधरी, अध्यापिका, 

मेड़ता सिटी, राजस्थान


सत्य की डगर
सरल होती तो
सीता की अग्नि परीक्षा ना होती।
सत्य की डगर
सरल होती तो
पांडवों का अज्ञाातवास ना होता।
सत्य की डगर
सरल होती तो
हरिश्चन्द्र यूँ बेघर ना होता।
सत्य की डगर
सरल होती तो
प्रह्लाद को पीड़ा ना होती।
सत्य की डगर
सरल होती तो
गीता का सार ना होता।


Thursday, November 28, 2024

जीवन है बाजार में बिकता

संबन्ध बने यहाँ खेल है 

24.07.2024

संबन्धों पर स्वार्थ है हावी, रिश्तों में ना मेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।

पैसा सबका बाप बन गया।

पैसे बिन प्रिय, ताप बन गया।

धन की खातिर बिकी किशोरी,

खरीददार दुल्हा, आप बन गया।

धनवानों को फंसा के शादी, दहेज केस कर जेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।

हृदय पर है, बुद्धि हावी।

धन ही  है रिश्तों की चाबी।

प्रेम खुले बाजार में बिकता,

धन बिन पत्नी भी बर्बादी।

धन बिन पटरी से उतरे रिश्ते, उलटे जीवन रेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।

भावुक हैं, हमें मूर्ख है माना।

स्वार्थ का गाया नहीं है गाना।

हम तो समझें, प्रेम की भाषा,

कपट का लेकिन हुआ फंसाना।

दुनियादारी नहीं है सीखी, राष्ट्रप्रेमी हुआ फेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।


Thursday, November 14, 2024

राही हूँ,नहीं कोई ठिकाना

किसी से विशेष संबन्ध नहीं हैं

21.08.2024

राही हूँ, नहीं कोई ठिकाना, किसी से विशेष संबन्ध नहीं हैं।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।

नहीं कोई अपना, नहीं पराया।

संबन्धों ने बहुत   लुभाया।

अपने बनकर ठगते ठग हैं,

प्रेम नाम पर बहुत सताया।

प्रेमी ही यहाँ, प्राण हैं हरते, कैसे कहूँ? संबन्ध  नहीं है। 

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।

जिसको देखो, अपना लगता।

हाथ में आया, सपना लगता।

अपने ही हैं, गला रेतते,

जीवन अब, वश तपना लगता।

स्वार्थ से रिश्ते जीते-मरते, बची हुई कोई, सुगंध नहीं है।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।

संबन्धों की कैसी माया?

झूठे ही संबन्ध  बनाया।

शिकार किया, फिर बड़े प्रेम से,

चूसा, लूटा और  जलाया।

छल, कपट और भले लूट हो, प्रेम की मिटती गंध नहीं है।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।


Wednesday, November 13, 2024

प्रेम है जीवन, प्रेम है सपना,

 प्रेम की कोई रीत नहीं है

21.08.2024


प्रेम है निष्ठा, प्रेम समर्पण, प्रेम में कोई जीत नहीं है।

प्रेम है जीवन, प्रेम है सपना, प्रेम की कोई रीत नहीं है।।

प्रेम में, ना पाने की चाहत।

प्रेम न करता, किसी को आहत।

प्रेम पात्र हित सदैव है जलना,

प्रेम न माँगे, कोई राहत।

प्रेम त्याग है, प्रेम आग है, प्रेम भाव है, गीत नहीं है।

प्रेम है जीवन, प्रेम है सपना, प्रेम की कोई रीत नहीं है।।

प्रेम की होती न कोई इच्छा।

प्रेम न लेता, कभी परीक्षा।

प्रेम तो वश, प्रेमी को जाने,

प्रेम न कानून, प्रेम न शिक्षा।

प्रेम है दुर्लभ, प्रेम है गौरव, प्रेम के जैसा, मीत नहीं है।

प्रेम है जीवन, प्रेम है सपना, प्रेम की कोई रीत नहीं है।।

प्रेम हार कर, करता अर्पण।

प्रेम जीत का करे समर्पण।

प्रेम भाव है, अमर कहाता,

प्रेम का कभी न होता तर्पण।

प्रेम ही जप है, प्रेम ही तप है, प्रेम गुलाबी, भीत नहीं है।

प्रेम है जीवन, प्रेम है सपना, प्रेम की कोई रीत नहीं है।।


Monday, November 11, 2024

गैरों ने भी गले लगाया

अपनों ने ठुकराया है


नहीं कोई है अपना यहाँ पर, कोई नहीं पराया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।

संबन्धों का आधार भावना।

संबन्धों की होती साधना।

मस्तिष्क तो करता विश्लेषण,

लक्षित स्वार्थ की करे कामना।

कोई देता त्याग प्रेम से, दिल भी किसी ने चुराया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।

सभी के अपने-अपने स्वारथ।

कहते हैं, उनको परमारथ।

प्रेम नाम ले लूट रहे नित,

राष्ट्रप्रेमी भी होते गारत।

अपने बन यहाँ लूट रहे हैं, फिर भी प्रेम दिखाया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।

झूठ, छल और कपट प्रेम है।

संबन्धों का यहाँ गेम है।

हत्या करते हैं जो यहाँ पर,

सम्मान में जड़ते वही फ्रेम है।

धन की खातिर हत्या होती, सब कुछ किसी ने लुटाया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।


Sunday, October 27, 2024

चंदा के बिन, नहीं चाँदनी,

 चाँदनी से ही चाँद नित सजते हैं।



24.08.2024

 संग-साथ बिन नहीं है जीवन, मैं-मैं मिल कर हम बनते हैं।

चंदा के बिन,  नहीं चाँदनी, चाँदनी से ही चाँद नित सजते हैं।।

पुरुष और प्रकृति मिलकर।

राग और विराग से सिलकर।

सुगंध जगत को देते हैं मिल,

कमल के साथ कमलिनी खिलकर।

पथ के बिन कोई पथिक हो कैसे? पथिक से ही, पथ बनते हैं।

चंदा के बिन,  नहीं चाँदनी, चाँदनी से ही चाँद नित सजते हैं।।

साध्य और साधन मिलकर।

मेघ आते हैं, हिल-मिलकर।

साधक बिन, साधना कैसी?

नदी पूर्ण सागर से मिलकर।

अकेला वर्ण कोई अर्थ न देता, मिलकर अर्थ निकलते हैं।

चंदा के बिन,  नहीं चाँदनी, चाँदनी से, चाँद नित सजते हैं।।

एक के बिन, अस्तित्व न दूजा।

नर बिन, नारी करे न पूजा।

पंच तत्व के मिलने से ही,

जन्म लेता है जग में चूजा।

राष्ट्रप्रेमी मिलकर ही राष्ट्र है, अलगाव से, राष्ट्र बिखरते हैं।

चंदा के बिन,  नहीं चाँदनी, चाँदनी से, चाँद नित सजते हैं।।


जो जीवों को खाते है,

 सबके हित में काम करेंगे

22.08.2024


जो जीवों को खाते है, वे जीवों से, क्या प्रेम करेंगे!

आज कर रहे प्रेम प्रदर्शन, कल उनका आहार करेंगे!!

जिसके मुँह है रक्त लग गया।

माँसाहार का चश्क लग गया।

मानवता को क्या समझेगा?

परपीड़न में, कंबख्त लग गया।

शाकाहार को अपनाकर ही, प्रकृति का सम्मान करेंगे।

आज कर रहे प्रेम प्रदर्शन, कल उनका आहार करेंगे!!

जिसके मुँह है, मुफ्त लग गया।

जिसे मुफ्त का माल मिल गया।

मुफ्तखोरों का स्व मर जाता,

आत्मा का भी मान मिट गया।

मुफ्तखोर जो मुफ्त चाहते, श्रम का क्या सम्मान करेंगे!

आज कर रहे प्रेम प्रदर्शन, कल उनका आहार करेंगे!!

दुखो से पीड़ित दुनिया सारी।

सबकी अपनी-अपनी बारी।

बोधिसत्व का बोध कह रहा,

नहीं चलाओ, किसी पर आरी।

पल-पल पीड़ा देते हैं जो, कैसे किसी को सुखी करेंगे!

आज कर रहे प्रेम प्रदर्शन, कल उनका आहार करेंगे!!

स्वयं कमाकर खाना सीखो।

सुख देना, सुख पाना सीखो।

शाकाहार को अपना कर,

सबको गले लगाना सीखो।

राष्ट्रप्रेमी संग साथ चलो मिल, सबके हित में काम करेंगे।

आज कर रहे प्रेम प्रदर्शन, कल उनका आहार करेंगे!!


Saturday, August 24, 2024

दीपों से अंधकार न मिटता

अन्तर्मन का दीप जलायें




दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का, दीप जलायें।

प्रतीकों को छोड़ बर्ढ़े अब, स्वच्छता का, अलख जगायें।

अविद्या का अंधकार छोड़कर।

कुप्रथाओं का जाल तोड़कर।

आगे बढ़ो, विकास के पथ पर,

निराशाओं से मुँह मोड़कर।

उर घावों से भले ही पीड़ित, प्रेम से घावों को सहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।

सूचना को, शिक्षा ना समझो।

जीना ही, वश लक्ष्य न समझो।

शिक्षा तो आचरण सुधारे,

मानवता की परीक्षा समझो।

पशुओं से भी निकृष्ट आचरण, शिक्षित वह कैसे कहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।

पढ़ते कुछ, करते कुछ और हैं।

कर्तव्य नहीं, करते कुछ और हैं।

कथनी कुछ, करनी कुछ और ही,

दिखते कुछ, अन्दर कुछ और हैं।

पत्नी बनकर, ठगी कर रहीं, शिकार को प्रेम से, ये सहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।