Wednesday, February 17, 2021

समय बदल गया, नारी बदली

 सच ही, सच की, नींव हिला दी

                                 



समय बदल गया, नारी बदली।

नहीं रही, अब रस की पुतली।

ऐसे-ऐसे कुकर्म कर रही,

घृणा को भी, आयें मितली।


प्रेम नाम ले, नित, नए, फँसाती।

सेक्स करो, खुद ही उकसाती।

धन लौलुपता, पूरी करने,

बलात्कार का केस चलाती।


शादी के नाम पर, जाल बिछाती।

झूठ बोल कर,  ब्याह रचाती।

पति कह, नर को, जी भर लूटे,

प्रेमी से मिल, उसे मरवाती।


कुकर्म घृणा के, करती ऐसे।

भाई-पिता भी, जीते कैसे?

सबको तनाव दे, मजे है करती,

रोज फँसा कर, जैसे-तैसे।


छल, धोखे से कर ली शादी।

खुद के मजे, पति की बरबादी।

दहेज के झूठे केस लगाकर,

सच ही, सच की, नींव हिला दी|


नर, नारी से डरता है अब।

बात राह में, करता है कब?

दुष्टा नारी, पीछा न छोड़े,

आत्म हत्या नर, करता है जब।


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