खुद ही, खुद को, ठगो न नारी
साथ भले ही ना रह पाये।
किन्तु साथ के गाने गाये।
माया तजकर सन्त कहें जो,
महफिल में, नारी ही आयें।
नारी को नर्क का द्वार बताया।
उनको भी, नारी ने, जाया।
संन्यासियों के जलसों में भी,
जमघट महिलाओं का आया।
नर-नारी मिल खीचें गाड़ी।
बुर्का पहनें, या पहने साड़ी।
मिलकर कर्म से, किस्मत लिखते,
रेखा तिरछी हों, या आड़ी।
नारी बिन कोई, घर नहीं चलता।
कली बिना, कोई पुष्प न खिलता।
सृष्टि, सृजन, समर्पण नारी।
नारी बिन ना, पत्ता हिलता।
नारी है, सदगुणों की, थाती।
प्रातः वन्दन, रात की बाती।
नर निराश, जब हो जाता है,
मधुर वचन से आश जगाती।
नारी, नर को, देव बनाती।
सदगुणों से, उसको नहलाती।
नर के, यदि अवगुण अपना ले,
निष्ठाहीन कुलटा बन जातीं।
सोचो, समझो, सभलो, नारी।
नर की कुराह, चलो न नारी।
झूठ, छल, कपट, कर नर से,
खुद ही, खुद को, ठगो न नारी।
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