Monday, February 1, 2021

दुनिया के बाजार में

 संबन्ध किए नीलाम कोर्ट में


जो चाहत हो, वह मिल जाता, दुनिया के बाजार में।

सम्बन्ध बने बाजार की वस्तु, होता हूँ बेजार मैं।।

सबका सबसे एक ही रिश्ता।

खाने में हों, काजू पिस्ता।

अपने स्वारथ पूरे हों तो,

राक्षस को कहते हैं फरिश्ता।

झूठ छल और कपट हैं रिश्ते, षड्यन्त्र भरा आचार में।

जो चाहत हो, वह मिल जाता, दुनिया के बाजार में।।

धन की खाक, बनी है चाहत।

प्रेम और विश्वास हैं आहत।

षड्यंत्रों में प्रेम मर गया,

शिकारी कभी, देता ना राहत।

अपना कहकर शिकार कर लिया, हम खोये थे विचार में।

जो चाहत हो, वह मिल जाता, दुनिया के बाजार में।।

थोड़ा सा विश्वास था चाहा।

घात करन की कला है आहा।

संबन्ध किए नीलाम कोर्ट में,

लुटे खड़े, हम हैं चैराहा।

धन की पुजारी, सब कुछ कीया, रहे महल हवादार में।

जो चाहत हो, वह मिल जाता, दुनिया के बाजार में।।


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