Sunday, February 28, 2021

नारी नर की चिर आकषर्ण

 नारी प्रेम की डोरी है

               


नारी नर की चिर आकषर्ण, नारी प्रेम की डोरी है।

नारी सृष्टि का केन्द्र बिन्दु है, काली हो या गोरी है।।

प्रकृति-पुरुष हैं, आदि काल से।

नर चलता है,  नारी चाल से।

नारी हित, ये, जीता-मरता,

नारी सुरक्षित, नर की ढाल से।

कदम-कदम, नारी ही प्रेरक, नर बिन नारी कोरी है।

नारी नर की चिर आकषर्ण, नारी प्रेम की डोरी है।।

अधरों की,  मुस्कान,  ने हेरा।

कपोल लालिमा, बनाया चेरा।

रमणी की बंकिम चितवन ने,

उर को भेदा, डारा डेरा।

वक्षस्थल की गोलाइयों ने, नर उर की, की चोरी है।

नारी नर की चिर आकषर्ण, नारी प्रेम की डोरी है।।

नारी चित, चलती, चतुराई।

नर को फंसाकर, है, हरषाई।

अंग-अंग कमनीय, कामिनी,

नर को खींचे, बने हरजाई।

प्रेम भाव, विश्वास, जन्मता, नर-नारी की जोरी है।

नारी नर की चिर आकषर्ण, नारी प्रेम की डोरी है।।


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