Tuesday, February 9, 2021

नहीं, जानता कहाँ बसन्त??


नहीं पूर्ण मैं, लगा हलन्त्!

नहीं, जानता कहाँ बसन्त??


सर्दी पीड़ित है तन-मन।

कोहरे से ढका हुआ जन-जन।

भाव बर्फ से आज जमे,

जीवन पथ दिखता निर्जन।

जीवन में है लगा हलन्त्!

नहीं, जानता कहाँ बसन्त??


बचपन भी तो जी न सका।

दो घूँट प्रेम के पी न सका।

कठोरता को नित झेला,

मैं खिलता बचपन दे न सका।

अनुशासन बन गया हलन्त्!

नहीं, जानता कहाँ बसन्त??


पास में जब कोई आया।

सिद्धान्तों का राग सुनाया।

गले किसी को लगा न सका,

कदम-कदम धोखा खाया।

अपराधी बन गया सन्त!

नहीं, जानता कहाँ बसन्त??


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