Thursday, February 11, 2021

बेटी से घर की शोभा न्यारी

 पल पल प्रति पल देती नारी

               

पल पल प्रति पल देती नारी।

बेटी से घर की शोभा न्यारी।

मात-पिता की देखभाल कर,

सब कुछ किया, बनी न दुलारी।


सब कुछ सहती, करती सेवा।

भाई को संभाले, देती मेवा।

अपना भाग ये, कभी न माँगे,

भाई की रक्षा को, पूजे देवा।


प्रसव पीड़ा सह, बनती माता।

कष्टों को ही चुनती माता।

संतान खातिर, लड़े मौत से,

पत्नी पर हावी, होती माता।


किशोरी देखे, साथी के सपने।

लगे प्रेम की, माला जपने।

सब कुछ सौंप दिया प्रेमी को,

धोखा खाकर, लगी है तपने।


मात-पिता ने दान कर दिया।

शादी के नाम, बाहर कर दिया।

घर में सब कुछ भाई का था,

दहेज बुरा, खाली विदा कर दिया।


अपरिचित व्यक्ति पति बन गया।

पहली रात ही मान हर गया।

खाली हाथ है, आई कुलक्षणी,

सास, ननद का ताना बन गया।


पल पल सौंपा तन भी सौंपा।

धन उनका था, मन मैंने सौंपा।

संतान जनी, पर नाम है नर का,

नर ने कभी, विश्वास न सौंपा।


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