Monday, February 22, 2021

बुद्धि से जीती, दिल से टूटी

 हावी,  पेशेवर  चतुराई

                                     

धन संपदा बहुत कमाई।

सोचो लाॅरी कब थी गाई?

प्रेम भाव है, कहाँ खो गया?

हावी,  पेशेवर  चतुराई।


स्पद्र्धा के पथ पर नारी।

भूल रही, अपनी ही पारी।

मातृत्व का भाव मर रहा,

प्रतियोगिता की है तैयारी।


युवावस्था संघर्ष में बीती।

प्रौढ़ अवस्था रीती-रीती।

शादी के सपने भी खोये,

खुद हारकर, दुनिया जीती।


प्रेम भाव था प्रस्फुट होता।

कैरियर में था लगाया गोता।

स्थिर हुई, अधिकारी बनकर,

घर का डूब गया है, लोटा।


सखी-सहेली, सजना, संवरना।

बहाने बनाकर, पिय से मिलना।

हिसाब किताब में सब छूटा,

संबन्धों को, प्रेम से सिलना।


बच्ची खोई, किशोरी भी छूटी।

युवती,  जीवन रण  ने लूटी।

काम करन को बाहर निकली,

बुद्धि से जीती, दिल से टूटी।


No comments:

Post a Comment

आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.