Sunday, December 29, 2024

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है

या मैं उनको ठुकराता हूँ

 अकेलापन या एकान्त साधना, समझ नहीं में पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

अपनी शर्तो पर जीना है।

एकान्त का विष पीना है।

शांति में ही तो साधना होती,

अकेले में कैसा जीना है?

सबसे ही हूँ, प्यार चाहता, नहीं किसी को दे पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

सबको देना ही बस चाहा।

नहीं किसी से पाना चाहा।

जिसने चाहा लूटा मुझको,

सबका हित है उर ने चाहा।

जिसने भी है हाथ बढ़ाया, पकड़ नहीं में पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

समझ नहीं मैं पाया खुद को।

दूर किया है, खुद से खुद को।

जिसने सब कुछ सौंप दिया था,

सौंप न पाया, उसको खुद को।

नहीं जिसे स्वीकार किया था, गीत उसी के गाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

तड़पन मिलने की अब उससे,

उसके बिन बिछड़ा हूँ खुद से।

खुद ही उससे दूर हुआ था,

मिलने की अब तड़पन उससे।

साधना नहीं अकेलापन है, नहीं मीत से मिल पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।


Thursday, December 19, 2024

पल भर भी मैं अलग न रहता,


सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।



 साथ भले ही आज नहीं हो, साथ की यादों में जीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।
साथ भले ही तुम्हें न भाता।
साथ तुम्हारे मैं मदमाता।
प्रेम तुम्हारा भरा है उर में,
गीत तुम्हारे अब भी गाता।
नेह तुम्हारा भरा हुआ है, युग बीते पर, नहीं रीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।
जहाँ सुखी हो, रहो वहीं पर।
याद न करना, मुझे कहीं पर।
तड़पन का आनन्द मुझे है,
पर भर भूला नहीं कहीं पर।
साथ किसी के खुशियाँ पाओ, साथ तुम्हारे ही जीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।
ख्वाबों में तुम साथ हो हर पल।
कामों में तुम साथ हो हर पल।
तुम्हारे हाथ ही खाना-पीना,
तुम्हारे साथ ही सोता प्रति पल।
जीवन तो गया साथ तुम्हारे, ना मालूम मैं क्यों जीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।

Tuesday, December 17, 2024

अपने आगे खड़ा हो गया

 बेटा! अब है बड़ा हो गया


मना करने पर पास था आता।

साथ में ही था वो सो पाता।

हाथ से मेरे, दूध था पीता,

वरना भूखा था सो जाता।

                अकेले का अभ्यास हो गया।

                बेटा! अब है बड़ा हो गया।

डाॅटा, डपटा, मारा-पीटा।

दूध पिलाया, खिलाया पपीता।

अपनी, उसकी, इच्छा मारी,

चाहा था, बने ज्ञान की गीता।

                 इंटरनेट से विद्वान हो गया।

                 बेटा! अब है बड़ा हो गया।

मोबाइल ही सार हो गया।

लेपटाॅप से प्यार हो गया।

साथ न उसको भाता है अब,

लगता वह वीतराग हो गया।

                 अपने पैरों खड़ा हो गया।

                 बेटा! अब है बड़ा हो गया।

संयम का अभ्यास कर रहा।

बचपन बीता, चाव मर रहा।

स्वस्थ रहे बस, यही चाह है,

जग को दे जो, अभी ले रहा।

                 अपने आगे खड़ा हो गया।

                 बेटा! अब है बड़ा हो गया।


Saturday, December 14, 2024

सत्य की डगर


पिस्ता चौधरी, अध्यापिका, 

मेड़ता सिटी, राजस्थान


सत्य की डगर
सरल होती तो
सीता की अग्नि परीक्षा ना होती।
सत्य की डगर
सरल होती तो
पांडवों का अज्ञाातवास ना होता।
सत्य की डगर
सरल होती तो
हरिश्चन्द्र यूँ बेघर ना होता।
सत्य की डगर
सरल होती तो
प्रह्लाद को पीड़ा ना होती।
सत्य की डगर
सरल होती तो
गीता का सार ना होता।


Thursday, November 28, 2024

जीवन है बाजार में बिकता

संबन्ध बने यहाँ खेल है 

24.07.2024

संबन्धों पर स्वार्थ है हावी, रिश्तों में ना मेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।

पैसा सबका बाप बन गया।

पैसे बिन प्रिय, ताप बन गया।

धन की खातिर बिकी किशोरी,

खरीददार दुल्हा, आप बन गया।

धनवानों को फंसा के शादी, दहेज केस कर जेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।

हृदय पर है, बुद्धि हावी।

धन ही  है रिश्तों की चाबी।

प्रेम खुले बाजार में बिकता,

धन बिन पत्नी भी बर्बादी।

धन बिन पटरी से उतरे रिश्ते, उलटे जीवन रेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।

भावुक हैं, हमें मूर्ख है माना।

स्वार्थ का गाया नहीं है गाना।

हम तो समझें, प्रेम की भाषा,

कपट का लेकिन हुआ फंसाना।

दुनियादारी नहीं है सीखी, राष्ट्रप्रेमी हुआ फेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।


Thursday, November 14, 2024

राही हूँ,नहीं कोई ठिकाना

किसी से विशेष संबन्ध नहीं हैं

21.08.2024

राही हूँ, नहीं कोई ठिकाना, किसी से विशेष संबन्ध नहीं हैं।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।

नहीं कोई अपना, नहीं पराया।

संबन्धों ने बहुत   लुभाया।

अपने बनकर ठगते ठग हैं,

प्रेम नाम पर बहुत सताया।

प्रेमी ही यहाँ, प्राण हैं हरते, कैसे कहूँ? संबन्ध  नहीं है। 

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।

जिसको देखो, अपना लगता।

हाथ में आया, सपना लगता।

अपने ही हैं, गला रेतते,

जीवन अब, वश तपना लगता।

स्वार्थ से रिश्ते जीते-मरते, बची हुई कोई, सुगंध नहीं है।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।

संबन्धों की कैसी माया?

झूठे ही संबन्ध  बनाया।

शिकार किया, फिर बड़े प्रेम से,

चूसा, लूटा और  जलाया।

छल, कपट और भले लूट हो, प्रेम की मिटती गंध नहीं है।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई  बंध नहीं है।।


Wednesday, November 13, 2024

प्रेम है जीवन, प्रेम है सपना,

 प्रेम की कोई रीत नहीं है

21.08.2024


प्रेम है निष्ठा, प्रेम समर्पण, प्रेम में कोई जीत नहीं है।

प्रेम है जीवन, प्रेम है सपना, प्रेम की कोई रीत नहीं है।।

प्रेम में, ना पाने की चाहत।

प्रेम न करता, किसी को आहत।

प्रेम पात्र हित सदैव है जलना,

प्रेम न माँगे, कोई राहत।

प्रेम त्याग है, प्रेम आग है, प्रेम भाव है, गीत नहीं है।

प्रेम है जीवन, प्रेम है सपना, प्रेम की कोई रीत नहीं है।।

प्रेम की होती न कोई इच्छा।

प्रेम न लेता, कभी परीक्षा।

प्रेम तो वश, प्रेमी को जाने,

प्रेम न कानून, प्रेम न शिक्षा।

प्रेम है दुर्लभ, प्रेम है गौरव, प्रेम के जैसा, मीत नहीं है।

प्रेम है जीवन, प्रेम है सपना, प्रेम की कोई रीत नहीं है।।

प्रेम हार कर, करता अर्पण।

प्रेम जीत का करे समर्पण।

प्रेम भाव है, अमर कहाता,

प्रेम का कभी न होता तर्पण।

प्रेम ही जप है, प्रेम ही तप है, प्रेम गुलाबी, भीत नहीं है।

प्रेम है जीवन, प्रेम है सपना, प्रेम की कोई रीत नहीं है।।


Monday, November 11, 2024

गैरों ने भी गले लगाया

अपनों ने ठुकराया है


नहीं कोई है अपना यहाँ पर, कोई नहीं पराया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।

संबन्धों का आधार भावना।

संबन्धों की होती साधना।

मस्तिष्क तो करता विश्लेषण,

लक्षित स्वार्थ की करे कामना।

कोई देता त्याग प्रेम से, दिल भी किसी ने चुराया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।

सभी के अपने-अपने स्वारथ।

कहते हैं, उनको परमारथ।

प्रेम नाम ले लूट रहे नित,

राष्ट्रप्रेमी भी होते गारत।

अपने बन यहाँ लूट रहे हैं, फिर भी प्रेम दिखाया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।

झूठ, छल और कपट प्रेम है।

संबन्धों का यहाँ गेम है।

हत्या करते हैं जो यहाँ पर,

सम्मान में जड़ते वही फ्रेम है।

धन की खातिर हत्या होती, सब कुछ किसी ने लुटाया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।


Sunday, October 27, 2024

चंदा के बिन, नहीं चाँदनी,

 चाँदनी से ही चाँद नित सजते हैं।



24.08.2024

 संग-साथ बिन नहीं है जीवन, मैं-मैं मिल कर हम बनते हैं।

चंदा के बिन,  नहीं चाँदनी, चाँदनी से ही चाँद नित सजते हैं।।

पुरुष और प्रकृति मिलकर।

राग और विराग से सिलकर।

सुगंध जगत को देते हैं मिल,

कमल के साथ कमलिनी खिलकर।

पथ के बिन कोई पथिक हो कैसे? पथिक से ही, पथ बनते हैं।

चंदा के बिन,  नहीं चाँदनी, चाँदनी से ही चाँद नित सजते हैं।।

साध्य और साधन मिलकर।

मेघ आते हैं, हिल-मिलकर।

साधक बिन, साधना कैसी?

नदी पूर्ण सागर से मिलकर।

अकेला वर्ण कोई अर्थ न देता, मिलकर अर्थ निकलते हैं।

चंदा के बिन,  नहीं चाँदनी, चाँदनी से, चाँद नित सजते हैं।।

एक के बिन, अस्तित्व न दूजा।

नर बिन, नारी करे न पूजा।

पंच तत्व के मिलने से ही,

जन्म लेता है जग में चूजा।

राष्ट्रप्रेमी मिलकर ही राष्ट्र है, अलगाव से, राष्ट्र बिखरते हैं।

चंदा के बिन,  नहीं चाँदनी, चाँदनी से, चाँद नित सजते हैं।।


जो जीवों को खाते है,

 सबके हित में काम करेंगे

22.08.2024


जो जीवों को खाते है, वे जीवों से, क्या प्रेम करेंगे!

आज कर रहे प्रेम प्रदर्शन, कल उनका आहार करेंगे!!

जिसके मुँह है रक्त लग गया।

माँसाहार का चश्क लग गया।

मानवता को क्या समझेगा?

परपीड़न में, कंबख्त लग गया।

शाकाहार को अपनाकर ही, प्रकृति का सम्मान करेंगे।

आज कर रहे प्रेम प्रदर्शन, कल उनका आहार करेंगे!!

जिसके मुँह है, मुफ्त लग गया।

जिसे मुफ्त का माल मिल गया।

मुफ्तखोरों का स्व मर जाता,

आत्मा का भी मान मिट गया।

मुफ्तखोर जो मुफ्त चाहते, श्रम का क्या सम्मान करेंगे!

आज कर रहे प्रेम प्रदर्शन, कल उनका आहार करेंगे!!

दुखो से पीड़ित दुनिया सारी।

सबकी अपनी-अपनी बारी।

बोधिसत्व का बोध कह रहा,

नहीं चलाओ, किसी पर आरी।

पल-पल पीड़ा देते हैं जो, कैसे किसी को सुखी करेंगे!

आज कर रहे प्रेम प्रदर्शन, कल उनका आहार करेंगे!!

स्वयं कमाकर खाना सीखो।

सुख देना, सुख पाना सीखो।

शाकाहार को अपना कर,

सबको गले लगाना सीखो।

राष्ट्रप्रेमी संग साथ चलो मिल, सबके हित में काम करेंगे।

आज कर रहे प्रेम प्रदर्शन, कल उनका आहार करेंगे!!


Saturday, August 24, 2024

दीपों से अंधकार न मिटता

अन्तर्मन का दीप जलायें




दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का, दीप जलायें।

प्रतीकों को छोड़ बर्ढ़े अब, स्वच्छता का, अलख जगायें।

अविद्या का अंधकार छोड़कर।

कुप्रथाओं का जाल तोड़कर।

आगे बढ़ो, विकास के पथ पर,

निराशाओं से मुँह मोड़कर।

उर घावों से भले ही पीड़ित, प्रेम से घावों को सहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।

सूचना को, शिक्षा ना समझो।

जीना ही, वश लक्ष्य न समझो।

शिक्षा तो आचरण सुधारे,

मानवता की परीक्षा समझो।

पशुओं से भी निकृष्ट आचरण, शिक्षित वह कैसे कहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।

पढ़ते कुछ, करते कुछ और हैं।

कर्तव्य नहीं, करते कुछ और हैं।

कथनी कुछ, करनी कुछ और ही,

दिखते कुछ, अन्दर कुछ और हैं।

पत्नी बनकर, ठगी कर रहीं, शिकार को प्रेम से, ये सहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।


Sunday, August 18, 2024

एक सिक्के के दो हैं पहलू

एक नर और एक नारी है।


नारी को नर प्राण से प्यारा, नर को भी, नारी प्यारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।

बहन भाई का अटूट है बंधन।

पवित्र कितना? रिश्तों का चंदन।

शंकर, शक्ति के हैं सेवक,

शक्ति करे, शिवजी का वंदन।

नर-नारी ने मिलकर ही तो, रच दी दुनिया सारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।

मात-पिता का जोड़ा होता।

जल ही जल में लगाता गोता।

कृषक फसल बाद में पाता,

पहले धरा में बीज है बोता।

जड़-चेतन के मिलने से ही, सृष्टि की रचना प्यारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।

नर नारी का प्रेम का बंधन।

प्रकृति ने किया है संबन्धन।

मिलकर दोनों पूर्णकाय हैं,

नारी नर का करे प्रबंधन।

राष्ट्रप्रेमी को नहीं मुक्ति कामना, स्वर्ग में भी मारा-मारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।


Sunday, August 4, 2024

लक्ष्य नहीं, गन्तव्य नहीं कोई

अविरल चलते रहना है


लक्ष्य नहीं, गन्तव्य नहीं कोई, अविरल चलते रहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

चलती का नाम है गाड़ी मानो।

घर में है जो, घरवाली मानो।

अहम् त्याग है, नदी उतरती,

स्वत्व मिटा सागर में मानो।

अहम् से ही टकराव हैं होते, साथ-साथ हमें रहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

सुख और दुख हैं आते-जाते।

दुख में रोते, सुख में गाते।

समय-समय के दोस्त हों दुश्मन,

समय-समय के रिश्ते-नाते।

प्रेम और सम्मान मिलाकर, साथ-साथ हमें बहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

नर-नारी मिल, परिवार बनाते।

परिवार मिल, हैं समाज सजाते।

समष्टि में है, व्यष्टि सुरक्षित,

व्यक्ति प्रेम के रंग रचाते।

प्रेम है जीवन, गन्तव्य नहीं कोई, प्रेम, प्रेम में रहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

 

Thursday, August 1, 2024

स्वार्थ है जग को घायल करता

 प्रेम घाव सहलाता है


अधिकारों से संघर्ष उपजता, कर्म जीना सिखलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

पाना तो लालच होता है।

देना प्रेम का  सोता है।

चाहत बाकी रहे न उसकी,

कर्म की खातिर खुद खोता है।

सब कुछ देकर, सब कुछ सहकर, व्यक्ति सन्त कहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

सभी प्रेम के याचक जग में।

सभी प्रेम के वाचक जग में

प्रेम को वो जन क्या समझेंगे,

बन्धन पड़े हैं, जिनके पग में।

प्रेम किसी को कष्ट न देता, प्रेम नहीं बहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

प्रेम कोई अधिकार न माँगे।

प्रेम कभी भी प्यार न माँगे।

प्रेम नहीं कोई सौदा करता,

प्रेम कभी प्रतिकार न माँगे।

प्रेम में नहीं कोई सीमा होती, प्रेम नहीं टहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।


Wednesday, July 31, 2024

प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं

 

 प्रेम गान ही गाती हो


हम चाहते हैं तुम्हें कितना, समझ नहीं तुम पाती हो।

प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।

प्रेम नहीं कुछ पाना होता।

प्रेम नहीं हर्जाना होता।

प्रेमी तो है समर्पण करता,

प्रेम में अहं मिट जाना होता।

प्रेम नाम स्वार्थ से पूरित, वासना से मदमाती हो।

प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।

प्रेम नहीं वश में करता है।

प्रेम नहीं सुख को हरता है।

प्रेम है कानून से ऊपर,

माँग नहीं, अर्पण करता है।

प्रेम किसी को नहीं बाँधता, जाओ जहाँ तुम जाती हो।

प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।

प्रेम कैसा? जो ऐसिड फेंके।

प्रेम नहीं, कानून को देखे।

आधिपत्य या मार डालना,

कैसे हैं? ये प्रेम के लेखे।

लुटने को तैयार खड़े हम, लुटेरी, नहीं हमारी थाती हो।

प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।


Saturday, July 27, 2024

प्रेम और अपराध का

ग्लोबल है बाजार

 चिंता कल की ना करो, खोज न कोई सार।

मुस्काकर तू प्रेम से, आगे बढ़ ले यार।।

जिसको शत्रू समझता, कल बन जाए मित्र।

जिनको प्रेमी समझता, खींचे केवल चित्र।।

सैल्फी तो नित लेत हैं, समझ न पाए सैल्फ।

मदद सभी से माँगते, नहीं किसी की हैल्प।।

प्रेम सभी से चाहते, करें प्रेम की लूट।

ऐसिड फेंकें प्रेम से, ठोकर मारें बूट।।

बढ़ी प्रेम की माँग है, आओ बेचे हाट।

मजे-मजे में धन बहुत, धोखे से हैं ठाट।।

अर्थ तंत्र है बढ़ रहा, खुले प्रेम बाजार।

जिस पर जितना धन दिखे, उतनी आँखें चार।।

कर शादी की बात ना, बदल गए हालात।

दुल्हन बुनती जाल है, दूल्हे को है लात।।

मन से मन ना मिलत हैं, मिलते हैं बस गात।

प्रेम धनी की लूट हित, कानूनों की बात।।

लूट हेतु, दुल्हन बनीं, प्रेम नाम है लूट।

प्रेम बना षड्यंत्र है, कानूनी है छूट।।

शादी कर वारिस बनें, देती हैं फिर मार।

प्रेम और अपराध का, ग्लोबल है बाजार।।

प्रेम बिके बाजार में, मोबाइल की धूम।

कीमत सबको चाहिए, पल में लेते चूम।।


Sunday, July 21, 2024

नहीं, प्रेम का गाया गाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना। 


प्रेम को ही है, जीवन माना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।

हमें भले ही, हो ठुकराया,

हमने सीखा, गले लगाना।

नहीं, प्रेम का गाया गाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

नहीं चाहते, तुमको पाना।

नहीं किसी को है ठुकराना।

स्वाभिमान से जीओ प्यारी,

नहीं गाते हम प्रेम का गाना।

नहीं चाहते तुम्हें रिझाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

नहीं तोड़ सकते हम तारे।

अपने सपने, तुम पर वारे।

तुमरी खुशियों की खातिर ही,

तुमरे प्रेमी, हमको प्यारे।

मन्द-मन्द तुम बस, मुस्काना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

हमारी खातिर, मत तुम रुकना।

हमारी खातिर, मत तुम झुकना।

आनन्द मिले, तुम वहाँ पर जाओ,

साथ हमारे, मिले, यदि सुख ना।

जिसको चाहो, उसको पाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

बंधन में ना, तुमको बाँधा।

खुद मिटकर, तुमरा हित साधा।

जब हो जरूरत, तुम आ जाना,

तुमरे लिए है, हमारा कांधा।

तुमरे बिन, मरना, हमने माना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

तुम्हारे साथ, जीवन है झरना।

तुम्हारे साथ, नहीं है डरना।

प्रेम सदैव आनन्द बाँटता,

नहीं किसी का सुख है हरना।

सबके जीवन में सुख लाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।


Saturday, July 6, 2024

मजबूरी में साथ न आओ

कर्म करो, और पाओ

                                              / डॉ.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

चाह है केवल इतनी मेरी, तुम आगे बढ़ती जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

अपनी कोई चाह नहीं है।

दिल को दिल की थाह नहीं है।

पीड़ा भी सुख से सह लेते,

पीड़ा देती आह नहीं है।

स्वस्थ रहो, और मस्त रहो, मनमौजी बन जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

मजबूर तुम्हें, नहीं करेंगे।

हमने किया, हम ही भरेंगे।

प्रेम कभी भी नहीं बाँधता,

खुश रहो, हम सब सह लेंगे।

चाह नहीं, कुछ पाने की, जो चाहो तुम पाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

इच्छा कोई शेष नहीं है।

तुम्हारे लायक वेश नहीं है।

चाहत अपनी पा लो बढ़कर,

हमारे पास कुछ शेष नहीं है।

हमको नहीं कोई शिकायत, जहाँ चाहो वहाँ जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

पाने की कोई चाह नहीं है।

देने को कुछ खास नहीं है।

स्वस्थ रहो, बस यही कामना,

प्रेम मरा, अहसास नहीं है।

अब हम नहीं रोकेंगे तुमको, जिसको चाहो, जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।


Tuesday, June 11, 2024

पितृ गृह में अधिकार हो पूरा,

स्वागत में पति बैठे हैं। 


बेटी को हम बेटी समझें, भार मान क्यूँ बैठे हैं।

कोरे हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

जिस घर में है जन्म लिया।

जिस घर को है प्रेम दिया।

भूल से भी, ना कहना पराई,

बसता उसका वहाँ जिया।

बेटी है, पूरा हक उसका, सब उसके दिल में पैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

बचपन में है प्रेम लुटाया।

किशोर अवस्था पाठ पढ़ाया।

कण-कण में अधिकार है उसका,

प्रेम से सींचा, प्रेम बढ़ाया।

दहेज का तो विरोध हो करते, संपत्ति दबाए बैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ।

सम्मान, साथ, अधिकार दिलाओ।

वारिस बेटियों को स्वीकारो,

सहभाग करो, सहभागी पाओ।

पितृ गृह में अधिकार हो पूरा, स्वागत में पति बैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।


Monday, June 10, 2024

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो,

 कुछ मस्ती भी तो जरूरी है


जहाँ चाहो तुम, रहो वहाँ पर, साथ की, ना मजबूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

पढ़ी-लिखी अब समझदार हो।

खतरों से भी, खबरदार हो।

अपने पैरों खड़ी हुई हो,

समझती खुद को असरदार हो।

इच्छा अपनी, मर चुकी सारी, तुम्हारी, न रहें, अधूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

मजबूरी में साथ न आओ।

जो चाहो, वह गाना गाओ।

साथ हमारे रस न मिलेगा,

जाओ प्यारी, जीवन रस पाओ।

जीवन फसल, लुट गई सारी, बाकी अब, बस तूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

रूप, रस, गंध, स्पर्ष नहीं है।

पाने की भी, अब, चाह नही है।

चाहत तुम्हारी, रहीं अधूरी,

तुम्हारे दिल की थाह नहीं है।

नहीं जरूरत, तुम्हें हमारी, तुम्हारी दुनिया,  पूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।