ठहरो नारी!
डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
क्या करती हो? ठहरो नारी! कुछ पल, सोच-विचार करो।
प्रेम, समर्पण, निष्ठा तज कर, ना, जग पर अत्याचार करो।।
स्नेह, दया, करूणा की मूरत।
भावों से, खिलती थी, सूरत।
निज अर्धांग की, प्रतियोगी बन,
सृष्टि को, करती, बदसूरत।
संबन्ध तो होते, दिल का समर्पण, ना, विश्वास का बंटाधार करो।
क्या करती हो? ठहरो नारी! कुछ पल, सोच-विचार करो।।
झूठ, छल-कपट, षड्यन्त्र छोड़ो।
तुम सच्चाई से, नाता जोड़ो।
शिक्षा, सहयोग, समर्पण, निष्ठा,
स्वयं को गढ़ो, मरीचिका छोड़ो।
सच ही शक्ति, सच ही भक्ति, ना, धोखा दे, लाचार करो।
क्या करती हो? ठहरो नारी! कुछ पल, सोच-विचार करो।।
संयम, धैर्य, मातृत्व की देवी।
क्यों? दुष्टा बन, प्राणों की लेवी।
शिक्षक, प्रेरक, नियंता नर की,
तुम तो थीं, सृष्टि की सेवी।
सृजन छोड़, विध्वंस के पथ पर, क्यों? ऐसा, दुराचार करो।
क्या करती हो? ठहरो नारी! कुछ पल, सोच-विचार करो।।
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