कोई न किसी पर भारी है
डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
प्रेम का भौतिक रूप प्रकृति है, नर की प्रकृति नारी है।
स्वाभाविक सहयोगी दोनों, कोई न किसी पर भारी है।।
कोमल और कठोर न कोई।
प्रकृति सींचती, नर ने बोई।
सृष्टि का आधार हैं दोनों,
छोटा-बड़ा, यहाँ नहीं है कोई।
भावों का भण्डार है नारी, नर की तर्कशीलता प्यारी है।
स्वाभाविक सहयोगी दोनों, कोई न किसी पर भारी है।।
प्रकृति-पुरुष संबंध निराला।
जन्म दिया है, उसने पाला।
लक्ष्य विहीन नर भटक रहा था,
पहना दी, उसने वरमाला।
असंतुष्ट वह, रहा अपूरण, पूरण करती नारी है।
स्वाभाविक सहयोगी दोनों, कोई न किसी पर भारी है।।
चट्टानों से वह टकराये।
सागर में भी राह बनाये।
सारी वेदना, पीड़ा भोगे,
बस एक बार नारी मुस्काये।
अलग-अलग असंतुष्ट अपूरण, मिल, पूरण इच्छा सारी है।
स्वाभाविक सहयोगी दोनों, कोई न किसी पर भारी है।।
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