नयनों में तुम बसी हुई हो
डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
हम भूल नहीं सकते तुमको, नयनों में तुम बसी हुई हो।
भले ही कभी मिल नहीं पाओ, उर में तुम ही सजी हुई हो।।
तुम ही प्रेरणा जीने की हो।
तुम ही प्रेरणा गीतों की हो।
तुम से ही ये जीवन प्यारी,
तुम ही घड़कन सीने की हो।
सद्य स्नाता, बिखरे कुंतल, रावी तट पर खड़ी हुई हो।
भले ही कभी मिल नहीं पाओ, उर में तुम ही सजी हुई हो।।
खिलखिलाहट, वह हँसी याद है।
बलखाती, वह चाल, याद है।
बुलाया था, मुझे, बड़े प्रेम से,
नेह पगी, फरियाद, याद है।
भुला न सका, कोशिश करके, अंग-अंग, तुम ही रमी हुई हो।
भले ही कभी मिल नहीं पाओ, उर में तुम ही सजी हुई हो।।
आने का तुमने, वायदा किया था।
दूर से, साथ के पल को, जिया था।
रूष्ट क्यों हों तुम? यह तो बताओ,
याद है, प्रेम का प्याला पिया था।
भले ही दूर हो, याद न करतीं, बाँहों में अब भी कसी हुई हो।
भले ही कभी, मिल नहीं पाओ, उर में तुम ही सजी हुई हो।।
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