जीत का ध्वज फहराना है
डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
नहीं, बाजार की चिंता है, अब, नहीं काम पर जाना है।
सामाजिक दूरी पर रहकर, जीत का ध्वज फहराना है।।
मानवता को बचायेंगे हम।
मानकों को अपनायेंगे हम।
नहीं थामेंगे, हाथ किसी का,
फिर भी साथ, निभायेंगे हम।
राशन भी, घर बैठे मिलेगा, मिल कर, पकाकर खाना है।
सामाजिक दूरी पर रहकर, जीत का ध्वज फहराना है।।
नहीं, क्रैच की, आज जरूरत।
बच्चों की दुनिया, खुबसूरत।
पति-पत्नी को, साथ मिल रहा,
इक-दूजे की, उन्हें जरूरत।
साथ रहेंगे, नहीं मिलेंगे, कोरोना को मिटाना है।
सामाजिक दूरी पर रहकर, जीत का ध्वज फहराना है।।
रोज काम पर, हम, जाते थे सब।
साथ में मिल, बैठे थे, कब-कब?
पत्नी भी तो, थी, नौकरी करती,
घरवाली है, आज, बनी अब।
अवसर आज मिला है, फिर से, घरवाली को सजाना है।
सामाजिक दूरी पर रहकर, जीत का ध्वज फहराना है।।
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